अर्थ |
सदा एक समान रहने वाला, अपरिवर्तनशील, जो व्यय / ख़र्च न किया हो, कम ख़र्च करने वाला, मितव्ययी, कृपण, कंजूस, जिसका कभी अन्त न हो, नित्य, अक्षय, अविनाशी। | | व्याकरण | | | उदाहरण |
परमात्मा अव्यय है। पुल्लिंग- व्यय का अभाव, ख़र्च न होना, ब्रह्म। वे शब्द जो सभी लिंगों विभक्तियों और वचनों में सदा एकरूप/अपरिवर्तित/अविकारी रहते हैं। ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक इत्यादि के कारण कभी रूप-परिवर्तन नहीं होता। (जैसे- अरे, रे, हे, परन्तु और तक, मात्र इत्यादि) | | विशेष |
- संस्कृत व्याकरण में 'अव्यय' के अंतर्गत वे सभी शब्द आते हैं जिन्हें हिन्दी में क्रियाविशेषण, समुच्चुयबोधक, विस्मयादिबोधक, उपसर्ग, प्रत्यय और निपात कहा जाता है। हिन्दी व्याकरण में समुच्चुयबोधक, विस्मयादिबोधक, सम्बन्धसूचक (परसर्ग), निपात तथा सकारात्मक शब्द (हाँ, जी) और नकारात्मक शब्द (न, नहीं, मत) 'अव्यय' कहे जाते हैं।
- कभी-कभी भ्रमवश कुछ शब्दों को 'क्रियाविशेषण' समझ लिया जाता है जबकि वे 'अव्यय' होते हैं। ऐसे शब्द जिनसे क्रिया की विशेषता सूचित नहीं होती, 'क्रियाविशेषण' नहीं कहे जा सकते।
| | संस्कृत |
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