प्रसंग-
इस प्रकार तत्वज्ञानी के समभाव का वर्णन करके अब समभाव को ब्रह्म का स्वरूप बतलाते हुए उसमें स्थित महापुरुषों की महिमा का वर्णन करते हैं-
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्राणे गवि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: ।।18।।
वे ज्ञानीजन विद्या और विनययुक्त ब्राह्राण में तथा गौ, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में भी समदर्शी ही होते हैं ।।18।।
The wise look with the same eye on a Brahma endowed with learning and culture, a cow, an elephant, a dog, and a pariah too. (18)
पण्डिता: = ज्ञानीजन; विद्याविनय संपन्ने = विद्या और विनययुक्त; ब्राह्मणे =ब्राह्मण में, गंवि = गौ; हस्तिनि = हाथी; शुनि = कुत्ते (और); श्वाके=चाण्डाल में; समदर्शिन: = समभाव से देखने वाले; एवं =ही (होते हैं)
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