प्रसंग-
अब उन दुर्गुण-दुराचारों में त्याज्य-बुद्धि कराने के लिए अगले दो श्लोकों में भगवान् वैसे लोगों की घोर निन्दा करते हुए उनकी दुर्गति का वर्णन करते हैं-
तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेषु नराधमान् ।
उन द्वेष करने वाले पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ ।।19।।
These haters, sinful, cruel and vilest among men, I cast again and again into demoniacal wombs in this world.(19)
तान् = उन ; द्विषत: = द्वेष करने वाले ; अशुभान् = पापाचारी (और) ; क्रूरान् = क्रूरकर्मी ; नराधमान् = नराधमों को ; अहमृ = मैं ; संसारेषु = संसार में ; अजस्त्रम् = बारम्बार ; आसुरीषु = आसुरी ; योनिषु = योनियों में ; एव = ही ; क्षिपामि = गिरता हूं
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