अन्त:करण जिसके वश में है, ऐसा सांख्ययोग का आचरण करने वाला पुरुष न कर्ता हुआ और न करवाता हुआ, बल्कि नवद्वारों वाले शरीर रूप घर में सब कर्मों को मन से त्यागकर आनन्दपूर्वक सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में स्थित रहता है ।।13।।
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The self-controlled sankhyayoga, doing nothing himself and getting nothing done by others, rests happily in god, the embodiment of truth, knowledge and bliss, mentally relegating all actions to the mansion of nine gates (the body with nine openings).(13)
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