जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, वे यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दु:ख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे अर्जुन[1] ! बुद्धिमान् विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता ।।22।।
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The pleasures which are born of sense-contacts are verily a source of suffering only (though appearing as enjoyable to worldly-minded pepole). They have a beginning and an end(they come and go). Arjuna, it is for this reason that a wise man does not indulge in them. (22)
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