हे अर्जुन[1] ! नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ अर्थात् शरीर धारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सबकी गर्भ धारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ ।।4।।
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Of all embodied beings that appear in all the species of various kinds Arjuna, Prakrti, or nature is the conceiving mother, while I am the seed-giving father. (4)
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