गीता 14:9

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:23, 6 जनवरी 2013 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

गीता अध्याय-14 श्लोक-9 / Gita Chapter-14 Verse-9

प्रसंग-


इस प्रकार सत्व, रज और तम- इन तीनों गुणों के स्वरूप का और उनके द्वारा जीवात्मा के बाँधे जाने का प्रकार बतलाकर अब उन तीन गुणों का स्वाभाविक व्यापार बतलाते हैं-


सत्त्वं सुखे संजयति रज: कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तम: प्रमादे संजयत्युत ।।9।।



हे अर्जुन[1] ! सत्त्वगुण सुख में लगाता है और रजोगुण कर्म में, तथा तमोगुण तो ज्ञान को ढककर प्रमाद में भी लगाता है ।।9।।

Sattava drives one to joy, and rajas to action; while tamas, clouding wisdom, incites one to errer as well as sleep and sloth. (9)


भारत = हे अर्जुन ; सत्त्वम् = सत्त्वगुण ; सुखे = सुखमें ; संजयति = लगाता है (और) ; रज: = रजोगुण ; कर्मणि = तमोगुण ; तु = तो ; ज्ञानम् = ज्ञानको ; आवृत्य = आच्छादन करके अर्थात् ढकके ; प्रमादे = प्रमाद में ; उत = भी ; संजयति = लगाता है



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख