हम ब्यूँस की टहनियाँ हैं
दराटों से काट छाँट कर
सुन्दर गट्ठरों में बाँध कर
हम मुँडेरों पर सजा दी गई हैं
खोल कर बिछा दी जाएंगी
बुरे वक़्त मे
हम छील दी जाएंगी
चारे की तरह
जानवरों के पेट की आग बुझाएंगीं
हम ब्यूँस की टहनियाँ हैं
छिल कर
सूख कर
हम और भी सुन्दर गट्ठरों में बँध जाएंगी
नए मुँडेरों पर सज जाएंगी
तोड़ कर झौंक दी जाएंगी
चूल्हों में
बुरे वक़्त में
ईंधन की तरह हम जलेंगी
आदमी का जिस्म गरमाएंगीं.
हम ब्यूँस की टहनियाँ हैं
रोप दी गई रूखे पहाड़ों पर
छोड़ दी गई बेरहम हवाओं के सुपुर्द
काली पड़ जाती है हमारी त्वचा
खत्म न होने वाली सर्दियों में
मूर्छित , खड़ी रह जातीं हैं हम
अर्द्ध निद्रा में
मौसम खुलते ही
हम चूस लेती हैं पत्थरों से
जल्दी जल्दी खनिज और पानी
अब क्या बताएं
कैसा लगता है
सब कुछ झेलते हुए
ज़िन्दा रह जाना इस तरह से
सिर्फ इस लिए
कि हम अपने कन्धों पर और टहनियाँ ढो सकें
ताज़ी, कोमल, हरी-हरी
कि वे भी काटी जा सकें बड़ी हो कर
खुरदुरी होने से पहले
छील कर सुखाई जा सकें
जलाई जा सकें
या फिर गाड़ दी जा सकें किसी रूखे पहाड़ पर
हमारी ही तरह .
हम ब्यूँस की टहनियाँ हैं
जितना चाहो दबाओ
झुकती ही जाएंगी
जैसा चाहो लचकाओ लहराती रहेंगीं
जब तक हम मे लोच है
और जब सूख जाएंगी
कड़क कर टूट जाएंगी.
2004