परिनिर्वाण मन्दिर कुशीनगर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:00, 8 अप्रैल 2013 का अवतरण (''''परिनिर्वाण मंदिर''' उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक प्रा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

परिनिर्वाण मंदिर उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक प्राचीन नगरों में से एक कुशीनगर में स्थित है। सर्वप्रथम कार्लाइल ने 1876 ई. में इस मंदिर और परिनिर्वाण प्रतिमा को खोज निकाला था। प्रतिमा को ईंटों के बने एक सिंहासन पर स्थापित किया गया था। यह सिंहासन 24 फुट लंबा तथा 5 फुट 6 इंच चौड़ा था। इसका प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर था। उत्तर और दक्षिण की दीवारों में एक-एक खिड़कियाँ थीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि परिनिर्वाण प्रतिमा की स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई थी, परन्तु यह मंदिर इतना प्राचीन नहीं प्रतीत होता। मूर्ति पर प्रयुक्त परवर्ती प्लास्टर इस बात का सूचक है कि यह मंदिर कई शताब्दियों तक परिवर्तित होता रहा।

बुद्ध प्रतिमा तथा सिंहासन

मंदिर मुख्य स्तूप के पश्चिम में स्थित था। कार्लाइल ने 1876 ई. में मंदिर और परिनिर्वाण प्रतिमा की खोज की थी। कार्लाइल को ऊँची दीवारें तो मिली थीं, परंतु छत के अवशेष नहीं मिले थे। इसमें केवल गर्भगृह और उसके आगे एक प्रवेश कक्ष था। इस टीले के गर्भगृह में खुदाई करते समय कार्लाइल को एक ऊँचे सिंहासन पर तथागत की 20 फुट (लगभग 6.1 मीटर) लंबी परिनिर्वाण मुद्रा की प्रतिमा मिली थी। यह प्रतिमा चित्तीदार बलुआ पत्थर की है। इसमें बुद्ध को पश्चिम की तरफ मुख करके लेटे हुए दिखाया गया है। इसका सिर उत्तराभिमुख है, दाहिना हाथ सिर के नीचे और बायाँ हाथ जंघे पर स्थित है। पैर एक-दूसरे के ऊपर हैं।[1] इस प्रतिमा को ईंटों के बने एक सिंहासन पर स्थापित किया गया था। यह सिंहासन 24 फुट लंबा तथा 5 फुट 6 इंच चौड़ा था। सिंहासन के ऊपर पत्थर की पट्टियाँ जड़ी हुई थीं। सिंहासन के अग्रभाग में तीन शोक संतप्त मूर्तियाँ हैं।[2] इसके नीचे पाँचवीं शताब्दी का लेख उत्कीर्ण है।[3] इस लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि परिनिर्वाण मूर्ति का प्रतिष्ठापक 'हरिबल'[4] नामक व्यक्ति था और इसका शिल्पी मथुरा का 'दिन्न' था।

निर्वाण मंदिर की खोज

मलबे की सफाई के पश्चात् कार्लाइल को निर्वाण मंदिर का पता चला। मंदिर की दीवार की मोटाई 3.05 मीटर और गर्भगृह की लंबाई-चौड़ाई 9.35x3.66 मीटर थी। प्रवेश कक्ष की लंबाई 10.92 मीटर तथा चौड़ाई 4.57 मीटर थी। सफाई के समय कार्लाइल को अल्प मात्रा मे चौरस ईंटें और टेढ़ी दीवार के अवशेष मिले थे, जिसके आधार पर कार्लाइल ने यह मत व्यक्त किया था कि इस मंदिर की छत मेहराब गुंबज से युक्त थी। इसका प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर था। उत्तर और दक्षिण की दीवारों में एक-एक खिड़कियाँ थीं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मूर्ति की दृष्टि से इस मंदिर का गर्भगृह छोटा है और प्रदक्षिणा के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है।

प्रतिमा की स्थापना

इसमें कोई संदेह नहीं कि परिनिर्वाण प्रतिमा की स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई थी, परन्तु यह मंदिर इतना प्राचीन नहीं प्रतीत होता। मूर्ति पर प्रयुक्त परवर्ती प्लास्टर इस बात का सूचक है कि यह मंदिर कई शताब्दियों तक परिवर्तित होता रहा। उत्तरी और दक्षिणी दीवारों के नीचे, मूर्ति से युक्त पूर्ववर्ती मन्दिर के अवशेष उस स्थान से मिले हैं, जहाँ से कार्लाइल को परिनिर्वाण मंदिर के अवशेष मिले थे।[5] लेकिन यह कहना कठिन है कि यह वही प्राचीन मंदिर था, जिसमें परिनिर्वाण प्रतिमा सर्वप्रथम स्थापित की गई थी और जिसका उल्लेख ह्वेनसाँग ने किया था।[6] कार्लाइन द्वारा अन्वेषित इस परिनिर्वाण मंदिर का निर्माण 11वीं-12वीं शताब्दी में हुआ होगा, जबकि कुशीनगर अवनति की ओर अग्रसर था। कार्लाइल ने इस मूर्ति की मरम्मत और मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।[7] आधुनिक काल में भी इसका कई बार जीर्णोद्धार होता रहा।[8]

विहार

मंदिर के चारों तरफ विहार बने हुए थे, जिन्हें सुविधा की दृष्टि से कई वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

पश्चिमी वर्ग

स्तूप और निर्वाण मंदिर के चारों ओर ईंटों से निर्मित कई स्थापत्य हैं, जिनका समय-समय पर एक धार्मिक मठ के रूप में विकास होता रहा। यहाँ से दो मठों[9] का पता चला है। यहाँ उत्खनन से बड़ी मात्रा में लिपि से युक्त और तिथिपरक वस्तुएँ प्रकाश में आई हैं। यहीं से प्राप्त मिट्टी की एक मुहर पर बने दो साल वृक्षों के नीचे बुद्ध की समाधि और दो पंक्तियों में ‘महापरिनिर्वाण भिक्षु संघ’ लेख लिखा हुआ है।[10] दो अन्य मुहरें भी मिलीं हैं, जिन पर 'मैत्रेय' की आकृति है, परंतु लेख वही है। इन लेखों की तिथि चौथी शताब्दी प्रतीत होती है। चाँदी का एक सिक्का भी मिला है, जिसे 'क्षत्रप' नरेश दामसेन का माना जा सकता है। इसके अतिरिक्त कुछ टूटी हुई मृण्मूर्तियाँ और बड़ी मात्रा में मृदभांड भी मिले हैं। इन समस्त वस्तुओं का निचली सतह से मिलना यह सिद्ध करता है कि ये दोनों मठ चौथी शताब्दी के पहले निर्मित हुए होंगे। उत्खनन से पश्चिम मंदिर के सामने कई भवन प्रकाश में आए हैं, जिनका प्रसार 107.93 मीटर लंबाई में था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कार्लाइल को यह मूर्ति 1877 ई. में खुदाई करते समय ऊपरी सतह से 10 फुट नीचे मिली थी। उसी समय यह मूर्ति कई खंड़ों में विभक्त थी। इस मूर्ति की पहले भी मरम्मत की गई थी। देखें, आ.स.रि., भाग 18, पृ. 57-58 और भाग 22, पृ. 17 । ऐसा लगता है कि इस प्रकार की प्रतिमाओं का कुशीनगर में प्राधान्य था और इनकी पूजा की जाती थी। परिनिर्वाण से संबंधित अन्य छोटी प्रतिमाएँ भी मिली हैं। इसी प्रकार की एक विशाल प्रतिमा अजंता की गुफा नं. 26 में भी उपलब्ध है। देखें, नलिनाक्ष दत्त एवं कृष्णदत्त बाजपेयी, डेवलपमेंट आफ बुद्धिज्म इन उत्तर प्रदेश, पृ. 360 (पादटिप्पणी)
  2. इन मूर्तियों की पहचान कठिन है बाईं तरफ एक नारी की प्रतिमा है, जो दोनों हाथ जमीन पर रखकर शोकसंतप्त मुद्रा में झुकी हुई है। दाईं ओर की मूर्ति स्त्री की है अथवा पुरुष की, यह तो स्पष्ट नहीं है पर यह मूर्ति भी शोकसंतप्त मुद्रा में दाएँ हाथ से सिर को पकड़े हुए हैं। बीच की मूर्ति बैठी हुई है। ये मूर्तियाँ आनंद, सुभद्र और मल्लिका को हो सकती है। बीच की मूर्ति हरिबल की भी हो सकती है।
  3. देयधर्म्मोयं महावीरस्वामिनो हरिबलस्य। प्रतिमा चेयं घटित दिन्नेन माथुरेण॥ देखें, आ. स. इ. ए. रि., 1906-07, पृ. 49
  4. यह हरिबल स्वामी संभवत: वही है जिसने मुख्य स्तूप में ताम्रपत्र को स्थापित किया था।
  5. देखें, फोगल, आर्कियोलाजिकल, सर्वे आफ इंडिया, वार्षिक रिपोर्ट, 1904-05 पृ. 48-49
  6. सेमुअल बील, बुद्धिस्ट रिकार्ड्स आफ दि वेस्टर्न वर्ल्ड, भाग 3 (कलकत्ता संस्करण, 1958), पृ. 283
  7. परिनिर्वाण प्रतिमा अपनी कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है। इसकी विशेषता यह है कि मूर्ति को तीन ओर से देखने पर इसके तीन भाव प्रकट होते हैं- मूर्ति पैर की ओर से देखने पर शांत, बीच से देखने पर शोकसंतप्त, तथा सिर की ओर से देखने पर प्रसन्न मुद्रा में प्रतीत होती है।
  8. मई 1955 में भारत सरकार द्वारा एक समिति गठित की गई जिसका प्रमुख उद्देश्य बुद्ध के जीवन से संबंधित स्थलों का पुनरुद्धार करना था।
  9. (क्यू और क्यू1)
  10. आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया, वार्षिक रिपोर्ट, 1906-7, पृ. 63

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख