"गीता 3:3": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
पंक्ति 9: पंक्ति 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
पूर्व श्लोक में भगवान् ने जो यह बात कही है कि सांख्यनिष्ठा ज्ञान योग के साधन से होती है और योगनिष्ठा कर्मयोग के साधन से होती है, उसी बात को सिद्ध करने के लिये अब यह दिखलाते है कि कर्तव्य कर्मो का स्वरूप-त्याग किसी भी निष्ठा का हेतु नहीं है-
पूर्व [[श्लोक]] में भगवान् ने जो यह बात कही है कि सांख्यनिष्ठा ज्ञान योग के साधन से होती है और योगनिष्ठा कर्मयोग के साधन से होती है, उसी बात को सिद्ध करने के लिये अब यह दिखलाते है कि कर्तव्य कर्मो का स्वरूप-त्याग किसी भी निष्ठा का हेतु नहीं है-
----
----
<div align="center">
<div align="center">
पंक्ति 24: पंक्ति 23:
'''श्रीभगवान् बोले-'''
'''श्रीभगवान् बोले-'''
----
----
हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनज्जय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">निष्पाप</balloon> ! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले वर्णन की गयी है । उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है ।।3।।
हे निष्पाप<ref>पार्थ, भारत, धनज्जय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले वर्णन की गयी है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है ।।3।।


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
पंक्ति 60: पंक्ति 59:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

09:41, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-3 श्लोक-3 / Gita Chapter-3 Verse-3

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में भगवान् ने जो यह बात कही है कि सांख्यनिष्ठा ज्ञान योग के साधन से होती है और योगनिष्ठा कर्मयोग के साधन से होती है, उसी बात को सिद्ध करने के लिये अब यह दिखलाते है कि कर्तव्य कर्मो का स्वरूप-त्याग किसी भी निष्ठा का हेतु नहीं है-


लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ।।3।।



श्रीभगवान् बोले-


हे निष्पाप[1] ! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले वर्णन की गयी है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है ।।3।।

Sri Bhagavan said :


Arjuna, in this world two fourses of sadhana (Spiritual discipline) have been enunciated by Me in the past. In the case of the Sankhyayogi, the sadhana proceeds along the path of knowledge; whereas in the case of the karmayogi, it proceeds along the path of action. (3)


अनघ = हे निष्पाप (अर्जुन) ; अस्मिन् = इस ; लोके = लोकमें ; द्विविधा = दो प्रकारकी ; ज्ञानयोगेन = ज्ञानयोगसे (और) ; योगिनाम् = योगियोंकी ;निष्ठा = निष्ठा ; मया = मेरेद्वारा ; पुरा = पहिले ; प्रोक्ता = कही गयी है ; सांख्यानाम् = ज्ञानियोंकी ; कर्मायोगेन = निष्काम कर्मयोगसे ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पार्थ, भारत, धनज्जय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

संबंधित लेख