"गीता 3:6": अवतरणों में अंतर
छो (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>") |
No edit summary |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
इस प्रकार केवल ऊपर से इन्द्रियों को विषयों से हटा लेने को मिथ्याचार बतलाकर, अब आसक्ति का त्याग करके इन्द्रियों द्वारा निष्काम भाव कर्तव्य कर्म करने वाले योगी की प्रशंसा करते हैं- | इस प्रकार केवल ऊपर से [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] को विषयों से हटा लेने को मिथ्याचार बतलाकर, अब आसक्ति का त्याग करके इन्द्रियों द्वारा निष्काम भाव कर्तव्य कर्म करने वाले योगी की प्रशंसा करते हैं- | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 21: | ||
|- | |- | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
जो मूढबुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है ।।6।। | जो मूढबुद्धि मनुष्य समस्त [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है ।।6।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 55: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
09:47, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-6 / Gita Chapter-3 Verse-6
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
||||