"अस्त्र शस्त्र": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Weapons-National-Museum-Delhi.jpg|thumb|250px|[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]] में रखे ख़ूबसूरत ख़ंजर का मूठ और उसकी म्यान, [[दिल्ली]]]]
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*अस्त्र उसे कहते हैं, जिसे मन्त्रों के द्वारा दूरी से फेंकते हैं। वे [[अग्नि]], [[गैस]] और [[विद्युत]] तथा यान्त्रिक उपायों से चलते हैं।
*शस्त्र ख़तरनाक हथियार हैं, जिनके प्रहार से चोट पहुँचती है और मृत्यु होती है। ये हथियार अधिक उपयोग किये जाते हैं।
आधुनिक काल के अस्त्र विज्ञान पर आधारित हैं। यहाँ पौराणिक ग्रंथों में उल्लिखित अस्त्र शस्त्रों का वर्णन किया जा रहा है।
   
   
आज हम यूरोप के अस्त्र-शस्त्र देखकर चकित और स्तम्भित हो जाते हैं और सोचने लगते हैं कि ये सब नये आविष्कार हैं। हमें अपनी पूर्व परम्परा का ज्ञान नहीं है। प्राचीन [[आर्यावर्त]] के आर्यपुरुष अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थे। उन्होंने अध्यात्म-ज्ञान के साथ-साथ आततियों और दुष्टों के दमन के लिये सभी अस्त्र-शस्त्रों की भी सृष्टि की थी। [[आर्य|आर्यों]] की यह शक्ति धर्म-स्थापना में सहायक होती थी। प्राचीन काल में जिन अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग होता था, उनका वर्णन इस प्रकार है-  
प्राचीन [[आर्यावर्त]] के आर्यपुरुष अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थे। ग्रंथों में उल्लेख है कि उन्होंने अध्यात्म-ज्ञान के साथ-साथ आतताइयों और दुष्टों के दमन के लिये सभी अस्त्र-शस्त्रों की भी सृष्टि की थी। [[आर्य|आर्यों]] की यह शक्ति धर्म-स्थापना में सहायक होती थी। प्राचीन काल में जिन अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग होता था, उनका वर्णन इस प्रकार है-  
*अस्त्र उसे कहते हैं, जिसे मन्त्रों के द्वारा दूरी से फेंकते हैं। वे अग्नि, गैस और विद्युत तथा यान्त्रिक उपायों से चलते हैं। <br />
*शस्त्र ख़तरनाक हथियार हैं, जिनके प्रहार से चोट पहुँचती है और मृत्यु होती है। ये हथियार अधिक उपयोग किये जाते हैं।


==अस्त्रों के विभाग==
==अस्त्रों के विभाग==
अस्त्रों को दो विभागों में बाँटा गया है- <br />
अस्त्रों को दो विभागों में बाँटा गया है- <br />
(1)वे आयुध जो मन्त्रों से चलाये जाते हैं- ये दैवी हैं। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं।  
# वे आयुध जो मन्त्रों से चलाये जाते हैं- ये दैवी हैं। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं।<br />
(2) वे शस्त्र हैं, जो यान्त्रिक उपाय से फेंके जाते हैं; ये अस्त्रनलिका आदि हैं नाना प्रकार के अस्त्र इसके अन्तर्गत आते हैं। अग्नि, गैस, विद्युत से भी ये अस्त्र छोडे जाते हैं। प्रमाणों की ज़रूरत नहीं है कि प्राचीन आर्य गोला-बारूद और भारी तोपें, टैंक बनाने में भी कुशल थे। इन अस्त्रों के लिये देवी और देवताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये भयकंर अस्त्र हैं और स्वयं ही अग्नि, गैस या विद्युत आदि से चलते हैं। यहाँ हम कुछ अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन करते हैं, जिनका प्राचीन संस्कृत-ग्रन्थों में उल्लेख है।
# वे शस्त्र हैं, जो यान्त्रिक उपाय से फेंके जाते हैं; ये अस्त्रनलिका आदि हैं नाना प्रकार के अस्त्र इसके अन्तर्गत आते हैं। अग्नि, गैस, विद्युत से भी ये अस्त्र छोडे जाते हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राचीन आर्य गोला-बारूद और भारी तोपें, टैंक बनाने में भी कुशल थे, जिसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिलता है। इन अस्त्रों के लिये देवी और देवताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये भयंकर अस्त्र हैं और स्वयं ही अग्नि, गैस या विद्युत आदि से चलते हैं, ऐसी मान्यताएँ थी। यहाँ हम कुछ अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन करते हैं, जिनका प्राचीन [[संस्कृत]]-ग्रन्थों में उल्लेख है -


इन अस्त्रों के अतिरिक्त अन्य अनेक अस्त्र हैं, जिनका हम यहाँ वर्णन नहीं कर सके। भुशुण्डी आदि अनेक शस्त्रों का वर्णन [[पुराण|पुराणों]] में है। इनमें जितना स्वल्प ज्ञान है, उसके आधार पर उन सबका रूप प्रकट करना सम्भव नहीं।<ref>लगभग 15 वर्ष पहले बस्ती के प्रज्ञाचक्षु पं॰ श्रीधनराज जी के दर्शन हुए थे। उन्होंने बतलाया था कि धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप-तीन प्राचीन ग्रन्थ याद है, इनमें से दो की प्रत्येक की श्लोक-संख्या 60000 है। अन्य ग्रन्थों के साथ इन ग्रन्थों की उन्होंने एक सूची भी लिखवायी थी, जो सम्भवतः बनारस के डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज श्रीकृष्णचन्द्रजी श्रीवास्तव के पास है। इसमें 'परमाणु' से शक्ति निर्माण का भी वर्णन है। यह विषय संवत 1995 में प्रकाशित स्वर्गीय प्रो0 श्रीरामदासजी गौड़ के 'हिंदुत्व' नामक ग्रन्थ में भी छप चुका है। इससे पता चलता है कि प्राचीन काल में 'परमाणु' (ऐटम) से शस्त्रादि-निर्माण की क्रिया भी भारतीयों को ज्ञात थी।</ref>
==पौराणिक अस्त्र शस्त्रों की सूची==
[[चित्र:Bow-And-Arrow.jpg|thumb|250px|[[धनुष अस्त्र|धनुष]] और [[बाण अस्त्र|बाण]]]]
#[[आग्नेय अस्त्र]]
#[[पर्जन्य अस्त्र]]
#[[पन्नग अस्त्र]]
#[[गरुड़ अस्त्र]]
#[[ब्रह्मास्त्र]]
#[[पाशुपत अस्त्र]]
#[[वैष्णव नारायणास्त्र]]
#[[वायव्य अस्त्र]]
#[[ब्रह्मशिरा अस्त्र]]
#[[एकाग्नि अस्त्र]]
#[[शक्ति अस्त्र]]
#[[तोमर अस्त्र]]
#[[पाश अस्त्र]]
#[[ऋष्टि अस्त्र]]
#[[मुद्गर अस्त्र]]
#[[गदा शस्त्र]]
#[[शूल अस्त्र]]
#[[चक्र अस्त्र]]
#[[वज्र अस्त्र]]
#[[त्रिशूल अस्त्र]]
#[[असि अस्त्र]]
#[[खड्ग शस्त्र]]
#[[फरसा अस्त्र]]
#[[चन्द्रहास अस्त्र]]
#[[मुशल अस्त्र]]
#[[धनुष अस्त्र]]
#[[बाण अस्त्र]]
#[[परिघ अस्त्र]]
#[[भिन्दिपाल अस्त्र]]
#[[नाराच अस्त्र]]
#[[परशु अस्त्र]]
#[[कुण्टा अस्त्र]]
#[[शंकु बर्छी अस्त्र]]
#[[पट्टिश अस्त्र]]
#[[वशि अस्त्र]]
#[[भुशुण्डी अस्त्र‎]]


आज हम इन सभी अस्त्र-शस्त्रों को भूल गये। हम भगवान श्री [[राम]] के हाथ में धनुष-बाण और भगवान श्री [[कृष्ण]] के हाथ में सुदर्शन चक्र, [[शिव|महादेव]] के हाथ में त्रिशूल और [[दुर्गा]] के हाथ में खड़ग देखकर भी उनके भक्त बनते हैं। पर निर्बल, कायर और भीरू पुरुष क्या भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और दुर्गा के भक्त बन सकते हैं? क्या [[रामायण]], [[गीता]] और दुर्गासप्तशती केवल पाठ करने के ही ग्रन्थ हैं? [[महाभारत]] में, जहाँ उन्होंने [[अर्जुन]] को गीतामृत के द्वारा रण में जूझने के लिये उद्यत किया था। आवश्यकता है कि रण में कभी पीठ न दिखाने वाले भगवान श्रीरामचन्द्र, सुदर्शनचक्रधारी योगेश्वर श्रीकृष्ण और महामाया दुर्गा को हम कभी न भूलें।
इन अस्त्रों के अतिरिक्त अन्य अनेक अस्त्र हैं, जिनका हम यहाँ वर्णन नहीं कर सके। भुशुण्डी आदि अनेक शस्त्रों का वर्णन [[पुराण|पुराणों]] में है। इनमें जितना स्वल्प ज्ञान है, उसके आधार पर उन सबका रूप प्रकट करना सम्भव नहीं।<ref>लगभग 15 वर्ष पहले बस्ती के प्रज्ञाचक्षु पं. श्रीधनराज जी के दर्शन हुए थे। उन्होंने बतलाया था कि धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप-तीन प्राचीन ग्रन्थ याद है, इनमें से दो की प्रत्येक की श्लोक-संख्या 60000 है। अन्य ग्रन्थों के साथ इन ग्रन्थों की उन्होंने एक सूची भी लिखवायी थी, जो सम्भवतः बनारस के डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज श्रीकृष्णचन्द्रजी श्रीवास्तव के पास है। इसमें 'परमाणु' से शक्ति निर्माण का भी वर्णन है। यह विषय [[संवत]] 1995 में प्रकाशित स्वर्गीय प्रो. श्रीरामदासजी गौड़ के 'हिंदुत्व' नामक ग्रन्थ में भी छप चुका है। इससे पता चलता है कि प्राचीन काल में 'परमाणु' (ऐटम) से शस्त्रादि-निर्माण की क्रिया भी भारतीयों को ज्ञात थी।</ref>


==टीका-टिप्पणी==
आज हम इन सभी अस्त्र-शस्त्रों को भूल गये। हम भगवान श्री [[राम]] के हाथ में धनुष-बाण और भगवान श्री [[कृष्ण]] के हाथ में [[सुदर्शन चक्र]], [[शिव|महादेव]] के हाथ में त्रिशूल और [[दुर्गा]] के हाथ में खड़ग देखकर भी उनके भक्त बनते हैं। पर निर्बल, कायर और भीरू पुरुष क्या भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और दुर्गा के भक्त बन सकते हैं? क्या [[रामायण]], [[गीता]] और दुर्गासप्तशती केवल पाठ करने के ही ग्रन्थ हैं? [[महाभारत]] में, जहाँ उन्होंने [[अर्जुन]] को गीतामृत के द्वारा रण में जूझने के लिये उद्यत किया था। आवश्यकता है कि रण में कभी पीठ न दिखाने वाले भगवान श्रीरामचन्द्र, सुदर्शनचक्रधारी योगेश्वर श्रीकृष्ण और महामाया दुर्गा को हम कभी न भूलें।
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
 
==वीथिका==
{{अस्त्र शस्त्र}}
<gallery>
चित्र:Daggers-National-Museum-Delhi.jpg|[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]] में रखे खंजर, [[दिल्ली]]
चित्र:Weapons-National-Museum-Delhi-1.jpg|[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]] में रखे अस्त्र शस्त्र, [[दिल्ली]]
चित्र:Gunpowder-Shell-National-Museum-Delhi.jpg|[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]] में बारूद रखने के सीप के खोल, [[दिल्ली]]
चित्र:Swords-National-Museum-Delhi.jpg|[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]] में रखी तलवारें, [[दिल्ली]]
</gallery>
==संबंधित लेख==
{{अस्त्र शस्त्र}}{{महाभारत}}{{भूले बिसरे शब्द}}
[[Category:महाभारत]]
[[Category:महाभारत]]
[[Category:पौराणिक अस्त्र-शस्त्र]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:भूला-बिसरा भारत]]
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10:14, 18 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में देखें अस्वीकरण
राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे ख़ूबसूरत ख़ंजर का मूठ और उसकी म्यान, दिल्ली
  • अस्त्र उसे कहते हैं, जिसे मन्त्रों के द्वारा दूरी से फेंकते हैं। वे अग्नि, गैस और विद्युत तथा यान्त्रिक उपायों से चलते हैं।
  • शस्त्र ख़तरनाक हथियार हैं, जिनके प्रहार से चोट पहुँचती है और मृत्यु होती है। ये हथियार अधिक उपयोग किये जाते हैं।

आधुनिक काल के अस्त्र विज्ञान पर आधारित हैं। यहाँ पौराणिक ग्रंथों में उल्लिखित अस्त्र शस्त्रों का वर्णन किया जा रहा है।

प्राचीन आर्यावर्त के आर्यपुरुष अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थे। ग्रंथों में उल्लेख है कि उन्होंने अध्यात्म-ज्ञान के साथ-साथ आतताइयों और दुष्टों के दमन के लिये सभी अस्त्र-शस्त्रों की भी सृष्टि की थी। आर्यों की यह शक्ति धर्म-स्थापना में सहायक होती थी। प्राचीन काल में जिन अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग होता था, उनका वर्णन इस प्रकार है-

अस्त्रों के विभाग

अस्त्रों को दो विभागों में बाँटा गया है-

  1. वे आयुध जो मन्त्रों से चलाये जाते हैं- ये दैवी हैं। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं।
  2. वे शस्त्र हैं, जो यान्त्रिक उपाय से फेंके जाते हैं; ये अस्त्रनलिका आदि हैं नाना प्रकार के अस्त्र इसके अन्तर्गत आते हैं। अग्नि, गैस, विद्युत से भी ये अस्त्र छोडे जाते हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राचीन आर्य गोला-बारूद और भारी तोपें, टैंक बनाने में भी कुशल थे, जिसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिलता है। इन अस्त्रों के लिये देवी और देवताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये भयंकर अस्त्र हैं और स्वयं ही अग्नि, गैस या विद्युत आदि से चलते हैं, ऐसी मान्यताएँ थी। यहाँ हम कुछ अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन करते हैं, जिनका प्राचीन संस्कृत-ग्रन्थों में उल्लेख है -

पौराणिक अस्त्र शस्त्रों की सूची

धनुष और बाण
  1. आग्नेय अस्त्र
  2. पर्जन्य अस्त्र
  3. पन्नग अस्त्र
  4. गरुड़ अस्त्र
  5. ब्रह्मास्त्र
  6. पाशुपत अस्त्र
  7. वैष्णव नारायणास्त्र
  8. वायव्य अस्त्र
  9. ब्रह्मशिरा अस्त्र
  10. एकाग्नि अस्त्र
  11. शक्ति अस्त्र
  12. तोमर अस्त्र
  13. पाश अस्त्र
  14. ऋष्टि अस्त्र
  15. मुद्गर अस्त्र
  16. गदा शस्त्र
  17. शूल अस्त्र
  18. चक्र अस्त्र
  19. वज्र अस्त्र
  20. त्रिशूल अस्त्र
  21. असि अस्त्र
  22. खड्ग शस्त्र
  23. फरसा अस्त्र
  24. चन्द्रहास अस्त्र
  25. मुशल अस्त्र
  26. धनुष अस्त्र
  27. बाण अस्त्र
  28. परिघ अस्त्र
  29. भिन्दिपाल अस्त्र
  30. नाराच अस्त्र
  31. परशु अस्त्र
  32. कुण्टा अस्त्र
  33. शंकु बर्छी अस्त्र
  34. पट्टिश अस्त्र
  35. वशि अस्त्र
  36. भुशुण्डी अस्त्र‎

इन अस्त्रों के अतिरिक्त अन्य अनेक अस्त्र हैं, जिनका हम यहाँ वर्णन नहीं कर सके। भुशुण्डी आदि अनेक शस्त्रों का वर्णन पुराणों में है। इनमें जितना स्वल्प ज्ञान है, उसके आधार पर उन सबका रूप प्रकट करना सम्भव नहीं।[1]

आज हम इन सभी अस्त्र-शस्त्रों को भूल गये। हम भगवान श्री राम के हाथ में धनुष-बाण और भगवान श्री कृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र, महादेव के हाथ में त्रिशूल और दुर्गा के हाथ में खड़ग देखकर भी उनके भक्त बनते हैं। पर निर्बल, कायर और भीरू पुरुष क्या भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और दुर्गा के भक्त बन सकते हैं? क्या रामायण, गीता और दुर्गासप्तशती केवल पाठ करने के ही ग्रन्थ हैं? महाभारत में, जहाँ उन्होंने अर्जुन को गीतामृत के द्वारा रण में जूझने के लिये उद्यत किया था। आवश्यकता है कि रण में कभी पीठ न दिखाने वाले भगवान श्रीरामचन्द्र, सुदर्शनचक्रधारी योगेश्वर श्रीकृष्ण और महामाया दुर्गा को हम कभी न भूलें।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लगभग 15 वर्ष पहले बस्ती के प्रज्ञाचक्षु पं. श्रीधनराज जी के दर्शन हुए थे। उन्होंने बतलाया था कि धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप-तीन प्राचीन ग्रन्थ याद है, इनमें से दो की प्रत्येक की श्लोक-संख्या 60000 है। अन्य ग्रन्थों के साथ इन ग्रन्थों की उन्होंने एक सूची भी लिखवायी थी, जो सम्भवतः बनारस के डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज श्रीकृष्णचन्द्रजी श्रीवास्तव के पास है। इसमें 'परमाणु' से शक्ति निर्माण का भी वर्णन है। यह विषय संवत 1995 में प्रकाशित स्वर्गीय प्रो. श्रीरामदासजी गौड़ के 'हिंदुत्व' नामक ग्रन्थ में भी छप चुका है। इससे पता चलता है कि प्राचीन काल में 'परमाणु' (ऐटम) से शस्त्रादि-निर्माण की क्रिया भी भारतीयों को ज्ञात थी।

वीथिका

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