"गीता 3:20": अवतरणों में अंतर
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पूर्व श्लोक में भगवान् ने < | पूर्व श्लोक में भगवान् ने [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को लोक संग्रह की ओर देखते हुए कर्मों का करना उचित बतलाया, इस पर यह जिज्ञासा होती है कि कर्म करने से किस प्रकार लोक संग्रह होता है ? अत: यही बात समझाने के लिये कहते हैं- | ||
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जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए | जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे। इसलिये तथा लोक संग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने को ही योग्य है अर्थात् तुझे कर्म करना ही उचित है ।।20।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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10:20, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-20 / Gita Chapter-3 Verse-20
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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