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[[चित्र:Kurukshetra-Mahabharat.jpg|thumb|350px|कुरुक्षेत्र में खड़ी 'अक्षौहिणी सेना]]
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'''अक्षौहिणी''' [[प्राचीन भारत]] में सेना का एक माप हुआ करता था। [[महाभारत]] के युद्घ में अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई थी। महाभारत युद्ध की सेना के मनुष्यों की संख्या कम से कम 4681920, घोड़ों की संख्या<ref>रथ में जुते हुओं को लगा कर</ref> 2715620 और इसी अनुपात में गजों की संख्या थी। इस संख्या से इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि महाभारत का युद्ध कितना विनाशकारी था।
'''अक्षौहिणी''' [[प्राचीन भारत]] में सेना का एक माप हुआ करता था। [[महाभारत]] के युद्घ में अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई थी। [[महाभारत युद्ध का आरम्भ|महाभारत युद्ध]] की सेना के मनुष्यों की संख्या कम से कम 4681920, [[घोड़ा|घोड़ों]] की संख्या<ref>रथ में जुते हुओं को लगा कर</ref> 2715620 और इसी अनुपात में [[गज|गजों]] की संख्या थी। इस संख्या से इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि महाभारत का युद्ध कितना विनाशकारी था।


<blockquote><poem>अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम् ।
<blockquote><poem>अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम् ।
प्रविश्यान्तर्दधे राजन्सागरं कुनदी यथा ॥<ref>5.49.19.0.6 [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योगपर्व]], एकोनविंशोऽध्यायः (19) श्लोक 6</ref></poem></blockquote>
प्रविश्यान्तर्दधे राजन्सागरं कुनदी यथा ॥<ref>5.49.19.0.6 [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योगपर्व]], एकोनविंशोऽध्यायः (19) [[श्लोक]] 6</ref></poem></blockquote>
==विभाग==
==विभाग==
किसी भी अक्षौहिणी सेना के चार विभाग होते थे-
किसी भी अक्षौहिणी सेना के चार विभाग होते थे-
#गज (हाँथी सवार)
#गज (हाथी सवार)
#रथ (रथी)
#रथ ([[रथी]])
#घोड़े (घुड़सवार)
#घोड़े (घुड़सवार)
#सैनिक (पैदल सिपाही)
#सैनिक (पैदल सिपाही)
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इसके प्रत्येक भाग की संख्या के अंकों का कुल जमा 18 आता है। एक घोड़े पर एक सवार बैठा होता था। [[हाथी]] पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक पीलवान और दूसरा लड़ने वाला योद्धा। इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और चार घोड़े रहे होंगे।<ref name="ab">{{cite web |url=http://www.dharmsansar.com/2011/09/blog-post_05.html |title=अक्षौहिणी सेना|accessmonthday=28 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
इसके प्रत्येक भाग की संख्या के अंकों का कुल जमा 18 आता है। एक घोड़े पर एक सवार बैठा होता था। [[हाथी]] पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक पीलवान और दूसरा लड़ने वाला योद्धा। इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और चार घोड़े रहे होंगे।<ref name="ab">{{cite web |url=http://www.dharmsansar.com/2011/09/blog-post_05.html |title=अक्षौहिणी सेना|accessmonthday=28 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==सेना के भाग==
==सेना के भाग==
{{tocright}}
एक अक्षौहिणी सेना नौ भागों में बटी होती थी-
एक अक्षौहिणी सेना नौ भागों में बटी होती थी-
#[[पत्ति (सेना)|पत्ति]] - 1 गज + 1 रथ + 3 घोड़े + 5 पैदल सिपाही
#पत्ती- 1 गज + 1 रथ + 3 घोड़े + 5 पैदल सिपाही
#[[सेनामुख]] (3 x पत्ति) - 3 गज + 3 रथ + 9 घोड़े + 15 पैदल सिपाही
#सेनामुख (3 x पत्ती)- 3 गज + 3 रथ + 9 घोड़े + 15 पैदल सिपाही
#[[गुल्म]] (3 x सेनामुख) - 9 गज + 9 रथ + 27 घोड़े + 45 पैदल सिपाही
#गुल्म (3 x सेनामुख)- 9 गज + 9 रथ + 27 घोड़े + 45 पैदल सिपाही
#[[गण (सेना)|गण]] (3 x गुल्म) - 27 गज + 27 रथ + 81 घोड़े + 135 पैदल सिपाही
#गण (3 x गुल्म)- 27 गज + 27 रथ + 81 घोड़े + 135 पैदल सिपाही 
#[[वाहिनी (सेना)|वाहिनी]] (3 x गण) - 81 गज + 81 रथ + 243 घोड़े + 405 पैदल सिपाही
#वाहिनी (3 x गण)- 81 गज + 81 रथ + 243 घोड़े + 405 पैदल सिपाही
#[[पृतना]] (3 x वाहिनी) - 243 गज + 243 रथ + 729 घोड़े + 1215 पैदल सिपाही
#पृतना (3 x वाहिनी)- 243 गज + 243 रथ + 729 घोड़े + 1215 पैदल सिपाही
#[[चमू]] (3 x पृतना) - 729 गज + 729 रथ + 2187 घोड़े + 3645 पैदल सिपाही
#चमू (3 x पृतना)- 729 गज + 729 रथ + 2187 घोड़े + 3645 पैदल सिपाही
#[[अनीकिनी]] (3 x चमू) - 2187 गज + 2187 रथ + 6561 घोड़े + 10935 पैदल सिपाही
#अनीकिनी (3 x चमू)- 2187 गज + 2187 रथ + 6561 घोड़े + 10935 पैदल सिपाही
#[[अक्षौहिणी]] (10 x अनीकिनी) - 21870 गज + 21870 रथ + 65610 घोड़े + 109350 पैदल सिपाही
#अक्षौहिणी (10 x अनीकिनी)- 21870 गज + 21870 रथ + 65610 घोड़े + 109350 पैदल सिपाही
==एक अक्षौहिणी सेना==
==एक अक्षौहिणी सेना==
इस प्रकार एक अक्षौहिणी सेना में [[हाथी]], रथ, घुड़सवार तथा सिपाही की सेना निम्नलिखित होती थी-
इस प्रकार एक अक्षौहिणी सेना में [[हाथी]], रथ, घुड़सवार तथा सिपाही की सेना निम्नलिखित होती थी-
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इसमें चारों अंगों के 218700 सैनिक बराबर-बराबर बंटे हुए होते थे। प्रत्येक इकाई का एक प्रमुख होता था।
इसमें चारों अंगों के 218700 सैनिक बराबर-बराबर बंटे हुए होते थे। प्रत्येक इकाई का एक प्रमुख होता था।
#पत्ती, सेनामुख, गुल्म तथा गण के नायक अर्धरथी हुआ करते थे।
#पत्ती, सेनामुख, गुल्म तथा गण के नायक '''अर्धरथी''' हुआ करते थे।
#वाहिनी, पृतना, चमु और अनीकिनी के नायक रथी हुआ करते थे।
#वाहिनी, पृतना, चमु और अनीकिनी के नायक '''रथी''' हुआ करते थे।
#एक अक्षौहिणी सेना का नायक अतिरथी होता था।
#एक अक्षौहिणी सेना का नायक '''अतिरथी''' होता था।
#एक से अधिक अक्षौहिणी सेना का नायक सामान्यतः एक महारथी हुआ करता था।<ref name="ab"/>
#एक से अधिक अक्षौहिणी सेना का नायक सामान्यतः एक '''महारथी''' हुआ करता था।<ref name="ab"/>
====पांडवों की सेना====
====पांडवों की सेना====
पांडवों के पास (7 अक्षौहिणी सेना)-
पांडवों के पास (7 अक्षौहिणी सेना)-
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#1202850 पैदल सैनिक
#1202850 पैदल सैनिक
===प्राचीन काल की चतुरंगिणी सेना===
===प्राचीन काल की चतुरंगिणी सेना===
प्राचीन [[भारत]] में सेना के चार अंग होते थे-हाथी, घोड़े, रथ और पैदल। जिस सेना में ये चारों  अंग होते थे, वह [[चतुरंगिणी सेना]] कहलाती थी।
प्राचीन [[भारत]] में सेना के चार अंग होते थे- हाथी, घोड़े, रथ और पैदल। जिस सेना में ये चारों  अंग होते थे, वह [[चतुरंगिणी सेना]] कहलाती थी।
 
==महाभारत के आदिपर्व और सभापर्व अनुसार==
==महाभारत के आदिपर्व और सभापर्व अनुसार==
*अक्षौहिणी सेना में कितने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते है? इसका हमें यथार्थ वर्णन सुनाइये, क्योंकि आपको सब कुछ ज्ञात है<ref>अक्षौहिण्या: परीमाणं नराश्वरथदन्तिनाम्।<br />
*अक्षौहिणी सेना में कितने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते है? इसका हमें यथार्थ वर्णन सुनाइये, क्योंकि आपको सब कुछ ज्ञात है<ref>अक्षौहिण्या: परीमाणं नराश्वरथदन्तिनाम्।<br />
यथावच्चैव नो ब्रूहि सर्व हि विदितं तव॥ सौतिरूवाच<br /></ref>
यथावच्चैव नो ब्रूहि सर्व हि विदितं तव॥ सौतिरूवाच<br /></ref>
*उग्रश्रवाजी ने कहा- एक रथ, एक हाथी, पाँच पैदल सैनिक और तीन घोड़े-बस, इन्हीं को सेना के मर्मज्ञ विद्वानों ने 'पत्ति' कहा है॥<ref>एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।<br />
*उग्रश्रवा जी ने कहा- एक रथ, एक हाथी, पाँच पैदल सैनिक और तीन घोड़े-बस, इन्हीं को सेना के मर्मज्ञ विद्वानों ने 'पत्ति' कहा है॥<ref>एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।<br />
त्रयश्च तुरगास्तज्झै: पत्तिरित्यभिधीयते॥<br /></ref>
त्रयश्च तुरगास्तज्झै: पत्तिरित्यभिधीयते॥<br /></ref>
*इस पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान् पुरुष 'सेनामुख' कहते हैं। तीन 'सेनामुखो' को एक 'गुल्म' कहा जाता है॥<ref>एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।<br />
*इस पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान् पुरुष 'सेनामुख' कहते हैं। तीन 'सेनामुखो' को एक 'गुल्म' कहा जाता है॥<ref>एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।<br />
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*तीन पृतना की एक 'चमू' तीन चमू की एक 'अनीकिनी' और दस अनीकिनी की एक 'अक्षौहिणी' होती है। यह विद्वानों का कथन है।<ref>चमूस्तु पृतनास्तिस्त्रस्तिस्त्रश्चम्वस्त्वनीकिनी।<br />
*तीन पृतना की एक 'चमू' तीन चमू की एक 'अनीकिनी' और दस अनीकिनी की एक 'अक्षौहिणी' होती है। यह विद्वानों का कथन है।<ref>चमूस्तु पृतनास्तिस्त्रस्तिस्त्रश्चम्वस्त्वनीकिनी।<br />
अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधा:॥<br /></ref>
अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधा:॥<br /></ref>
*श्रेष्ठ ब्राह्मणो! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हज़ार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही कहनी चाहिये।<ref>अक्षौहिण्या: प्रसंख्याता रथानां द्विजसत्तमा:।<br />
*श्रेष्ठ [[ब्राह्मण|ब्राह्मणो]]! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हज़ार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही कहनी चाहिये।<ref>अक्षौहिण्या: प्रसंख्याता रथानां द्विजसत्तमा:।<br />
संख्या गणिततत्त्वज्ञै: सहस्त्राण्येकविंशति:॥<br />
संख्या गणिततत्त्वज्ञै: सहस्त्राण्येकविंशति:॥<br />
शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च सप्तति:।<br />
शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च सप्तति:।<br />
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*तपोधनो! संख्या का तत्त्व जानने वाले विद्वानों ने इसी को अक्षौहिणी कहा है, जिसे मैंने आप लोगों को विस्तारपूर्वक बताया है।<ref>एतामक्षौहिणीं प्राहु: संख्यातत्त्वविदो जना:।<br />
*तपोधनो! संख्या का तत्त्व जानने वाले विद्वानों ने इसी को अक्षौहिणी कहा है, जिसे मैंने आप लोगों को विस्तारपूर्वक बताया है।<ref>एतामक्षौहिणीं प्राहु: संख्यातत्त्वविदो जना:।<br />
यां व: कथितवानस्मि विस्तरेण तपोधना:॥<br /></ref>
यां व: कथितवानस्मि विस्तरेण तपोधना:॥<br /></ref>
*श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इसी गणना के अनुसार कौरवों-पाण्ड़वों दोनों सेनाओं की संख्या अठारह अक्षौहिणी थी।<ref>एतया संख्यया ह्यासन् कुरुपाण्ड़वसेनयो:।<br />
*श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इसी गणना के अनुसार [[कौरव|कौरवों]]-[[पाण्ड़व|पाण्ड़वों]] दोनों सेनाओं की संख्या अठारह अक्षौहिणी थी।<ref>एतया संख्यया ह्यासन् कुरुपाण्ड़वसेनयो:।<br />
अक्षौहिण्यो द्विजश्रेष्ठा: पिण्ड़िताष्टादशैव तु॥<br /></ref>
अक्षौहिण्यो द्विजश्रेष्ठा: पिण्ड़िताष्टादशैव तु॥<br /></ref>
*अद्भुत कर्म करने वाले काल की प्रेरणा से समन्तपञ्चक क्षेत्र में कौरवों को निमित्त बनाकर इतनी सेनाएँ इकट्ठी हुई और वहीं नाश को प्राप्त हो गयीं।<ref>समेतास्तत्र वै देशे तत्रैव निधनं गता:।<br />   
*अद्भुत कर्म करने वाले काल की प्रेरणा से समन्तपञ्चक क्षेत्र में कौरवों को निमित्त बनाकर इतनी सेनाएँ इकट्ठी हुई और वहीं नाश को प्राप्त हो गयीं।<ref>समेतास्तत्र वै देशे तत्रैव निधनं गता:।<br />   
कौरवान् कारणं कृत्वा कालेनाद्भुतकर्मणा॥<br /></ref>
कौरवान् कारणं कृत्वा कालेनाद्भुतकर्मणा॥<br /></ref>
====संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशानुसार====
अक्षौहिणी ([[स्त्रीलिंग]]) [अक्षाणां रथानां सर्वषामिन्द्रियाणां वा ऊहिनी-ष. त.] [अक्ष्+ऊह्+णिनि+ङीप्]
*पूरी चतुरंगिणी सेना, जिसमें 21870 रथ, 21870 [[हाथी]], 65610 घोड़े तथा 109350 पदाति हों।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=06|url=|ISBN=}}</ref>
==अलवेरूनी के अनुसार==
==अलवेरूनी के अनुसार==
[[अलबेरूनी|अलवेरूनी]] ने अक्षौहिणी की परिमाण-संबंधी व्याख्या इस प्रकार की है-
[[अलबेरूनी|अलवेरूनी]] ने अक्षौहिणी की परिमाण-संबंधी व्याख्या इस प्रकार की है-
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*एक सेनामुख में 3 पंक्ति होती हैं।  
*एक सेनामुख में 3 पंक्ति होती हैं।  
*एक पंक्ति में 1 रथ होता है।  
*एक पंक्ति में 1 रथ होता है।  
*शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस'(मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोड़िसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग 900 वर्ष बाद [[मिस्र]] पर उसका राज्य था। उन रथों को दो घोड़े खींचते थे।
*शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस'(मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोड़िसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग 900 [[वर्ष]] बाद [[मिस्र]] पर उसका राज्य था। उन रथों को दो घोड़े खींचते थे।
*रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं।  
*रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं।  
*युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है।  
*युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है।  
*एक अक्षौहिणी में 21,870 रथ, 21,870 हाथी, 65,610 सवार और 109,350 पैदल सैनिक होते हैं।  
*एक अक्षौहिणी में 21,870 रथ, 21,870 हाथी, 65,610 सवार और 109,350 पैदल सैनिक होते हैं।  
*हर रथ में चार घोड़े और उनका सारथी होता है जो बाणों से सुसज्जित होता है, उसके दो साथियों के पास भाले होते हैं और एक रक्षक होता है जो पीछे से सारथी की रक्षा करता है और एक गाड़ीवान होता है।  
*हर रथ में चार घोड़े और उनका सारथी होता है जो बाणों से सुसज्जित होता है, उसके दो साथियों के पास भाले होते हैं और एक रक्षक होता है जो पीछे से सारथी की रक्षा करता है और एक गाड़ीवान होता है।  
*हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक जो कुर्सी के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है; कुर्सी में उसका मालिक धनुष-बाण से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं जो भाले फेंकते हैं और उसका विदूषक हौहवा (?) होता है जो युद्ध से इतर अवसरों पर उसके आगे चलता है।  
*हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक जो कुर्सी के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है; कुर्सी में उसका मालिक [[धनुष]]-[[बाण]] से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं जो भाले फेंकते हैं और उसका विदूषक हौहवा (?) होता है जो युद्ध से इतर अवसरों पर उसके आगे चलता है।  
*तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं उनकी संख्या 284,323 होती है (एवमेव के अनुसार)। जो लोग घुड़सवार होते हैं उनकी संख्या 87,480 होती है। एक अक्षौहिणी में हाथियों की संख्या 21,870 होती है, रथों की संख्या भी 21,870 होती है, घोड़ों की संख्या 153,090 और मनुष्यों की संख्या 459,283 होती है।  
*तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं उनकी संख्या 284,323 होती है (एवमेव के अनुसार)। जो लोग घुड़सवार होते हैं उनकी संख्या 87,480 होती है। एक अक्षौहिणी में हाथियों की संख्या 21,870 होती है, रथों की संख्या भी 21,870 होती है, घोड़ों की संख्या 153,090 और मनुष्यों की संख्या 459,283 होती है।  
*एक अक्षौहिणी सेना में समस्त जीवधारियों- हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों-की कुल संख्या 634,243 होती है। अठारह अक्षौहिणीयों के लिए यही संख्या 11,416,374 हो जाती है अर्थात 393,660 हाथी, 2,755,620 घोड़े, 8,267,094 मनुष्य।
*एक अक्षौहिणी सेना में समस्त जीवधारियों- हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों-की कुल संख्या 634,243 होती है। अठारह अक्षौहिणीयों के लिए यही संख्या 11,416,374 हो जाती है अर्थात् 393,660 हाथी, 2,755,620 घोड़े, 8,267,094 मनुष्य।


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==संबंधित लेख==
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10:15, 3 अगस्त 2023 के समय का अवतरण

कुरुक्षेत्र में खड़ी 'अक्षौहिणी सेना

अक्षौहिणी प्राचीन भारत में सेना का एक माप हुआ करता था। महाभारत के युद्घ में अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई थी। महाभारत युद्ध की सेना के मनुष्यों की संख्या कम से कम 4681920, घोड़ों की संख्या[1] 2715620 और इसी अनुपात में गजों की संख्या थी। इस संख्या से इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि महाभारत का युद्ध कितना विनाशकारी था।

अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम् ।
प्रविश्यान्तर्दधे राजन्सागरं कुनदी यथा ॥[2]

विभाग

किसी भी अक्षौहिणी सेना के चार विभाग होते थे-

  1. गज (हाथी सवार)
  2. रथ (रथी)
  3. घोड़े (घुड़सवार)
  4. सैनिक (पैदल सिपाही)

इसके प्रत्येक भाग की संख्या के अंकों का कुल जमा 18 आता है। एक घोड़े पर एक सवार बैठा होता था। हाथी पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक पीलवान और दूसरा लड़ने वाला योद्धा। इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और चार घोड़े रहे होंगे।[3]

सेना के भाग

एक अक्षौहिणी सेना नौ भागों में बटी होती थी-

  1. पत्ति - 1 गज + 1 रथ + 3 घोड़े + 5 पैदल सिपाही
  2. सेनामुख (3 x पत्ति) - 3 गज + 3 रथ + 9 घोड़े + 15 पैदल सिपाही
  3. गुल्म (3 x सेनामुख) - 9 गज + 9 रथ + 27 घोड़े + 45 पैदल सिपाही
  4. गण (3 x गुल्म) - 27 गज + 27 रथ + 81 घोड़े + 135 पैदल सिपाही
  5. वाहिनी (3 x गण) - 81 गज + 81 रथ + 243 घोड़े + 405 पैदल सिपाही
  6. पृतना (3 x वाहिनी) - 243 गज + 243 रथ + 729 घोड़े + 1215 पैदल सिपाही
  7. चमू (3 x पृतना) - 729 गज + 729 रथ + 2187 घोड़े + 3645 पैदल सिपाही
  8. अनीकिनी (3 x चमू) - 2187 गज + 2187 रथ + 6561 घोड़े + 10935 पैदल सिपाही
  9. अक्षौहिणी (10 x अनीकिनी) - 21870 गज + 21870 रथ + 65610 घोड़े + 109350 पैदल सिपाही

एक अक्षौहिणी सेना

इस प्रकार एक अक्षौहिणी सेना में हाथी, रथ, घुड़सवार तथा सिपाही की सेना निम्नलिखित होती थी-

  1. गज - 21870
  2. रथ - 21870
  3. घुड़सवार - 65610
  4. पैदल सिपाही - 109350

इसमें चारों अंगों के 218700 सैनिक बराबर-बराबर बंटे हुए होते थे। प्रत्येक इकाई का एक प्रमुख होता था।

  1. पत्ती, सेनामुख, गुल्म तथा गण के नायक अर्धरथी हुआ करते थे।
  2. वाहिनी, पृतना, चमु और अनीकिनी के नायक रथी हुआ करते थे।
  3. एक अक्षौहिणी सेना का नायक अतिरथी होता था।
  4. एक से अधिक अक्षौहिणी सेना का नायक सामान्यतः एक महारथी हुआ करता था।[3]

पांडवों की सेना

पांडवों के पास (7 अक्षौहिणी सेना)-

  1. 153090 रथ
  2. 153090 गज
  3. 459270 अश्व
  4. 765270 पैदल सैनिक

कौरवों की सेना

कौरवों के पास (11 अक्षौहिणी सेना)-

  1. 240570 रथ
  2. 240570 गज
  3. 721710 घोड़े
  4. 1202850 पैदल सैनिक

प्राचीन काल की चतुरंगिणी सेना

प्राचीन भारत में सेना के चार अंग होते थे- हाथी, घोड़े, रथ और पैदल। जिस सेना में ये चारों अंग होते थे, वह चतुरंगिणी सेना कहलाती थी।

महाभारत के आदिपर्व और सभापर्व अनुसार

  • अक्षौहिणी सेना में कितने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते है? इसका हमें यथार्थ वर्णन सुनाइये, क्योंकि आपको सब कुछ ज्ञात है[4]
  • उग्रश्रवा जी ने कहा- एक रथ, एक हाथी, पाँच पैदल सैनिक और तीन घोड़े-बस, इन्हीं को सेना के मर्मज्ञ विद्वानों ने 'पत्ति' कहा है॥[5]
  • इस पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान् पुरुष 'सेनामुख' कहते हैं। तीन 'सेनामुखो' को एक 'गुल्म' कहा जाता है॥[6]
  • तीन गुल्म का एक 'गण' होता है, तीन गण की एक 'वाहिनी' होती है और तीन वाहिनियों को सेना का रहस्य जानने वाले विद्वानों ने 'पृतना' कहा है।[7]
  • तीन पृतना की एक 'चमू' तीन चमू की एक 'अनीकिनी' और दस अनीकिनी की एक 'अक्षौहिणी' होती है। यह विद्वानों का कथन है।[8]
  • श्रेष्ठ ब्राह्मणो! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हज़ार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही कहनी चाहिये।[9]
  • निष्पाप ब्राह्मणो! एक अक्षौहिणी में पैदल मनुष्यों की संख्या एक लाख नौ हज़ार तीन सौ पचास (109350) जाननी चाहिये।[10]
  • एक अक्षौहिणी सेना में घोड़ों की ठीक-ठीक संख्या पैंसठ हज़ार छ: सौ दस (65610) कही गयी है।[11]
  • तपोधनो! संख्या का तत्त्व जानने वाले विद्वानों ने इसी को अक्षौहिणी कहा है, जिसे मैंने आप लोगों को विस्तारपूर्वक बताया है।[12]
  • श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इसी गणना के अनुसार कौरवों-पाण्ड़वों दोनों सेनाओं की संख्या अठारह अक्षौहिणी थी।[13]
  • अद्भुत कर्म करने वाले काल की प्रेरणा से समन्तपञ्चक क्षेत्र में कौरवों को निमित्त बनाकर इतनी सेनाएँ इकट्ठी हुई और वहीं नाश को प्राप्त हो गयीं।[14]

संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशानुसार

अक्षौहिणी (स्त्रीलिंग) [अक्षाणां रथानां सर्वषामिन्द्रियाणां वा ऊहिनी-ष. त.] [अक्ष्+ऊह्+णिनि+ङीप्]

  • पूरी चतुरंगिणी सेना, जिसमें 21870 रथ, 21870 हाथी, 65610 घोड़े तथा 109350 पदाति हों।[15]

अलवेरूनी के अनुसार

अलवेरूनी ने अक्षौहिणी की परिमाण-संबंधी व्याख्या इस प्रकार की है-

  • एक अक्षौहिणी में 10 अंतकिनियां होती हैं।
  • एक अंतकिनी में 3 चमू होते हैं।
  • एक चमू में 3 पृतना होते हैं।
  • एक पृतना में 3 वाहिनियां होती हैं।
  • एक वाहिनी में 3 गण होते हैं।
  • एक गण में 3 गुल्म होते हैं।
  • एक गुल्म में 3 सेनामुख होते हैं।
  • एक सेनामुख में 3 पंक्ति होती हैं।
  • एक पंक्ति में 1 रथ होता है।
  • शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस'(मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोड़िसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग 900 वर्ष बाद मिस्र पर उसका राज्य था। उन रथों को दो घोड़े खींचते थे।
  • रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं।
  • युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है।
  • एक अक्षौहिणी में 21,870 रथ, 21,870 हाथी, 65,610 सवार और 109,350 पैदल सैनिक होते हैं।
  • हर रथ में चार घोड़े और उनका सारथी होता है जो बाणों से सुसज्जित होता है, उसके दो साथियों के पास भाले होते हैं और एक रक्षक होता है जो पीछे से सारथी की रक्षा करता है और एक गाड़ीवान होता है।
  • हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक जो कुर्सी के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है; कुर्सी में उसका मालिक धनुष-बाण से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं जो भाले फेंकते हैं और उसका विदूषक हौहवा (?) होता है जो युद्ध से इतर अवसरों पर उसके आगे चलता है।
  • तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं उनकी संख्या 284,323 होती है (एवमेव के अनुसार)। जो लोग घुड़सवार होते हैं उनकी संख्या 87,480 होती है। एक अक्षौहिणी में हाथियों की संख्या 21,870 होती है, रथों की संख्या भी 21,870 होती है, घोड़ों की संख्या 153,090 और मनुष्यों की संख्या 459,283 होती है।
  • एक अक्षौहिणी सेना में समस्त जीवधारियों- हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों-की कुल संख्या 634,243 होती है। अठारह अक्षौहिणीयों के लिए यही संख्या 11,416,374 हो जाती है अर्थात् 393,660 हाथी, 2,755,620 घोड़े, 8,267,094 मनुष्य।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रथ में जुते हुओं को लगा कर
  2. 5.49.19.0.6 उद्योगपर्व, एकोनविंशोऽध्यायः (19) श्लोक 6
  3. 3.0 3.1 अक्षौहिणी सेना (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 मई, 2013।
  4. अक्षौहिण्या: परीमाणं नराश्वरथदन्तिनाम्।
    यथावच्चैव नो ब्रूहि सर्व हि विदितं तव॥ सौतिरूवाच
  5. एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।
    त्रयश्च तुरगास्तज्झै: पत्तिरित्यभिधीयते॥
  6. एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।
    पत्तिं तु त्रिगुणामेतामाहु: सेनामुखं बुधा:।
    त्रीणि सेनामुखान्येको गुल्म इत्यभिधीयते॥
  7. त्रयो गुल्मा गणो नाम वाहिनी तु गणास्त्रय:।
    स्मृतास्तिस्त्रस्तु वाहिन्य: पृतनेति विचक्षणै:॥
  8. चमूस्तु पृतनास्तिस्त्रस्तिस्त्रश्चम्वस्त्वनीकिनी।
    अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधा:॥
  9. अक्षौहिण्या: प्रसंख्याता रथानां द्विजसत्तमा:।
    संख्या गणिततत्त्वज्ञै: सहस्त्राण्येकविंशति:॥
    शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च सप्तति:।
    गजानां च परीमाणमेतदेव विनिर्दिशेत्॥
  10. ज्ञेयं शतसहस्त्रं तु सहस्त्राणि नवैव तु।
    नराणामपि पञ्चाशच्छतानि त्रीणि चानघा:॥
  11. पञ्चषष्टिसहस्त्राणि तथाश्वानां शतानि च।
    दशोत्तराणि षट् प्राहुर्यथावदिह संख्यया॥
  12. एतामक्षौहिणीं प्राहु: संख्यातत्त्वविदो जना:।
    यां व: कथितवानस्मि विस्तरेण तपोधना:॥
  13. एतया संख्यया ह्यासन् कुरुपाण्ड़वसेनयो:।
    अक्षौहिण्यो द्विजश्रेष्ठा: पिण्ड़िताष्टादशैव तु॥
  14. समेतास्तत्र वै देशे तत्रैव निधनं गता:।
    कौरवान् कारणं कृत्वा कालेनाद्भुतकर्मणा॥
  15. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 06 |

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