"कुरु": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(कुरुदेश को अनुप्रेषित)
 
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
#REDIRECT[[कुरुदेश]]
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=कुरु|लेख का नाम=कुरु (बहुविकल्पी)}}
 
'''कुरु''' [[महाभारत]] में वर्णित '[[कुरु वंश]]' के प्रथम पुरुष कहे जाते हैं। वे बड़े प्रतापी और तेजस्वी राजा थे। उन्हीं के नाम पर कुरु वंश की शाखाएँ निकलीं और विकसित हुईं। एक से एक प्रतापी और तेजस्वी वीर कुरु के वंश में पैदा हुए। [[पांडव|पांडवों]] और [[कौरव|कौरवों]] ने भी कुरु वंश में ही जन्म लिया था। विश्व प्रसिद्ध 'महाभारत का युद्ध' भी कुरुवंशियों में ही लड़ा गया।
{{tocright}}
==जन्म==
[[हिन्दू]] धार्मिक ग्रंथ '[[महाभारत]]' के अनुसार [[हस्तिनापुर]] में एक प्रतापी राजा था, जिसका नाम [[संवरण]] था। संवरण [[वेद|वेदों]] को मानने वाला और [[सूर्यदेव]] का उपासक था। वह जब तक सूर्यदेव की उपासना नहीं कर लेता था, [[जल]] का एक घूंट भी कंठ के नीचे नहीं उतारता था। एक दिन संवरण हिम पर्वत पर हाथ में [[धनुष अस्त्र|धनुष]]-[[बाण अस्त्र|बाण]] लेकर आखेट के लिए भ्रमण कर रहा था, तभी उसे एक अत्यंत सुंदर युवती दिखाई दी। वह युवती इतनी सुंदर थी कि संवरण उस पर आसक्त हो गया। वह उसके पास जाकर बोला- "तन्वंगी, तुम कौन हो? तुम देवी हो, [[गंधर्व]] हो या किन्नरी हो? तुम्हें देखकर मेरा चित्त चंचल और व्याकुल हो उठा। क्या तुम मेरे साथ गंधर्व विवाह करोगी? मैं सम्राट हूँ, तुम्हें हर तरह से सुखी रखूँगा।"
 
युवती ने संवरण को बताया कि वह सूर्य की छोटी पुत्री [[तपती|ताप्ती]]<ref>कहीं-कहीं इनका नाम '[[तपती]]' भी आता है।</ref> है। उसने यह भी कहा कि जब तक मेरे [[पिता]] आज्ञा नहीं देंगे, मैं आपके साथ [[विवाह]] नहीं कर सकती। यदि आपको मुझे पाना है तो मेरे पिता को प्रसन्न कीजिए।" संवरण ने सूर्यदेव की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया और वरदान स्वरूप पत्नी रूप में ताप्ती को माँग लिया। ताप्ती और संवरण से ही कुरु का जन्म हुआ।
==कुरु महाजनपद==
{{main|कुरु महाजनपद}}
राजा कुरु के नाम से ही '[[कुरु महाजनपद]]' का नाम प्रसिद्ध हुआ, जो [[प्राचीन भारत]] के [[सोलह महाजनपद|सोलह महाजनपदों]] में से एक था। इसका क्षेत्र आधुनिक [[हरियाणा]] ([[कुरुक्षेत्र]]) के ईर्द-गिर्द था। इसकी राजधानी संभवतः [[हस्तिनापुर]] या [[इंद्रप्रस्थ]] थी। कुरु के राज्य का विस्तार कहाँ तक रहा होगा, ये भारतियों के लिए खोज का विषय है; किन्तु विश्व इतिहास में कुरु प्राचीन विश्व के सर्वाधिक विशाल साम्राज्य को नए आयाम देने वाले चक्रवर्ती राजा थे। उन्होंने [[ईरान]] में मेड़ साम्राज्य को अपने ही ससुर अस्त्यागस से हस्तांतरित करते हुए साम्राज्य का नया नाम 'अजमीढ़ साम्राज्य'<ref>Achaemenid_empire</ref> रखा था। इस साम्राज्य की सीमाएँ [[भारत]] से [[मिस्र]], लीबिया और ग्रीक तक विस्तृत थीं।
==वंश परम्परा==
[[कौरव]] [[चन्द्रवंश|चन्द्रवंशी]] थे। वे अपने आदिपुरुष के रूप में [[चन्द्रमा देवता|चन्द्रमा]] को मानते थे। इनके आराध्य [[शिव]] और गुरु [[शुक्राचार्य]] थे। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[ब्रह्मा]] से [[अत्रि]], अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से [[बुध देवता|बुध]] और बुध से इलानंदन [[पुरुरवा]] का जन्म हुआ। पुरुरवा के कौशल्या से जन्मेजय, जन्मेजय के अनंता से प्रचिंवान, प्रचिंवान के अश्म्की से संयाति, संयाति के वारंगी से अहंयाति, अहंयाति के भानुमती से सार्वभौम, सार्वभौम के सुनंदा से जयत्सेन, जयत्सेन के सुश्रवा से अवाचीन, अवाचीन के मर्यादा से अरिह, अरिह के खल्वंगी से महाभौम, महाभौम के शुयशा से अनुतनायी, अनुतनायी के कामा से अक्रोधन, अक्रोधन के कराम्भा से देवातिथि, देवातिथि के मर्यादा से अरिह, अरिह के सुदेवा से ऋक्ष, ऋक्ष के ज्वाला से मतिनार, मतिनार के सरस्वती से तंसु, तंसु के कालिंदी से इलिन, इलिन के राथान्तरी से [[दुष्यंत]] हुए।
 
दुष्यंत के [[शकुंतला]] से [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] हुए, भरत के सुनंदा से भमन्यु, भमन्यु के विजय से सुहोत्र, सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती, हस्ती के यशोधरा से विकुंठन, विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़, अजमीढ़ से [[संवरण]] हुए, संवरण के [[तपती|ताप्ती]] से कुरु हुए, जिनके नाम से ये वंश '[[कुरु वंश]]' कहलाया। कुरु के शुभांगी से विदुरथ हुए, विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा, अनाश्वा के अमृता से परीक्षित, परीक्षित के सुयशा से भीमसेन, भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा, प्रतिश्रावा से प्रतीप, प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक एवं शांतनु का जन्म हुआ। देवापि किशोरावस्था में ही संन्यासी हो गए एवं बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में लग गए। इसलिए सबसे छोटे पुत्र [[शांतनु]] को गद्दी मिली। शांतनु के [[गंगा]] से देवव्रत हुए, जो आगे चलकर [[भीष्म]] के नाम से प्रसिद्ध हुए।
 
भीष्म का वंश आगे नहीं बढ़ा, क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की थी। शांतनु की दूसरी पत्नी [[सत्यवती]] से [[चित्रांगद]] और [[विचित्रवीर्य]] हुए। लेकिन इनका वंश भी आगे नहीं चल सका। इस तरह कुरु की यह शाखा डूब गई, लेकिन दूसरी शाखाओं ने [[मगध]] पर राज किया और तीसरी शाखा ने [[ईरान]] पर।
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}{{महाभारत युद्ध}}{{पौराणिक चरित्र}}
[[Category:महाभारत]][[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:पौराणिक कोश]]
__INDEX__

12:16, 14 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

कुरु एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कुरु (बहुविकल्पी)

कुरु महाभारत में वर्णित 'कुरु वंश' के प्रथम पुरुष कहे जाते हैं। वे बड़े प्रतापी और तेजस्वी राजा थे। उन्हीं के नाम पर कुरु वंश की शाखाएँ निकलीं और विकसित हुईं। एक से एक प्रतापी और तेजस्वी वीर कुरु के वंश में पैदा हुए। पांडवों और कौरवों ने भी कुरु वंश में ही जन्म लिया था। विश्व प्रसिद्ध 'महाभारत का युद्ध' भी कुरुवंशियों में ही लड़ा गया।

जन्म

हिन्दू धार्मिक ग्रंथ 'महाभारत' के अनुसार हस्तिनापुर में एक प्रतापी राजा था, जिसका नाम संवरण था। संवरण वेदों को मानने वाला और सूर्यदेव का उपासक था। वह जब तक सूर्यदेव की उपासना नहीं कर लेता था, जल का एक घूंट भी कंठ के नीचे नहीं उतारता था। एक दिन संवरण हिम पर्वत पर हाथ में धनुष-बाण लेकर आखेट के लिए भ्रमण कर रहा था, तभी उसे एक अत्यंत सुंदर युवती दिखाई दी। वह युवती इतनी सुंदर थी कि संवरण उस पर आसक्त हो गया। वह उसके पास जाकर बोला- "तन्वंगी, तुम कौन हो? तुम देवी हो, गंधर्व हो या किन्नरी हो? तुम्हें देखकर मेरा चित्त चंचल और व्याकुल हो उठा। क्या तुम मेरे साथ गंधर्व विवाह करोगी? मैं सम्राट हूँ, तुम्हें हर तरह से सुखी रखूँगा।"

युवती ने संवरण को बताया कि वह सूर्य की छोटी पुत्री ताप्ती[1] है। उसने यह भी कहा कि जब तक मेरे पिता आज्ञा नहीं देंगे, मैं आपके साथ विवाह नहीं कर सकती। यदि आपको मुझे पाना है तो मेरे पिता को प्रसन्न कीजिए।" संवरण ने सूर्यदेव की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया और वरदान स्वरूप पत्नी रूप में ताप्ती को माँग लिया। ताप्ती और संवरण से ही कुरु का जन्म हुआ।

कुरु महाजनपद

राजा कुरु के नाम से ही 'कुरु महाजनपद' का नाम प्रसिद्ध हुआ, जो प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था। इसका क्षेत्र आधुनिक हरियाणा (कुरुक्षेत्र) के ईर्द-गिर्द था। इसकी राजधानी संभवतः हस्तिनापुर या इंद्रप्रस्थ थी। कुरु के राज्य का विस्तार कहाँ तक रहा होगा, ये भारतियों के लिए खोज का विषय है; किन्तु विश्व इतिहास में कुरु प्राचीन विश्व के सर्वाधिक विशाल साम्राज्य को नए आयाम देने वाले चक्रवर्ती राजा थे। उन्होंने ईरान में मेड़ साम्राज्य को अपने ही ससुर अस्त्यागस से हस्तांतरित करते हुए साम्राज्य का नया नाम 'अजमीढ़ साम्राज्य'[2] रखा था। इस साम्राज्य की सीमाएँ भारत से मिस्र, लीबिया और ग्रीक तक विस्तृत थीं।

वंश परम्परा

कौरव चन्द्रवंशी थे। वे अपने आदिपुरुष के रूप में चन्द्रमा को मानते थे। इनके आराध्य शिव और गुरु शुक्राचार्य थे। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानंदन पुरुरवा का जन्म हुआ। पुरुरवा के कौशल्या से जन्मेजय, जन्मेजय के अनंता से प्रचिंवान, प्रचिंवान के अश्म्की से संयाति, संयाति के वारंगी से अहंयाति, अहंयाति के भानुमती से सार्वभौम, सार्वभौम के सुनंदा से जयत्सेन, जयत्सेन के सुश्रवा से अवाचीन, अवाचीन के मर्यादा से अरिह, अरिह के खल्वंगी से महाभौम, महाभौम के शुयशा से अनुतनायी, अनुतनायी के कामा से अक्रोधन, अक्रोधन के कराम्भा से देवातिथि, देवातिथि के मर्यादा से अरिह, अरिह के सुदेवा से ऋक्ष, ऋक्ष के ज्वाला से मतिनार, मतिनार के सरस्वती से तंसु, तंसु के कालिंदी से इलिन, इलिन के राथान्तरी से दुष्यंत हुए।

दुष्यंत के शकुंतला से भरत हुए, भरत के सुनंदा से भमन्यु, भमन्यु के विजय से सुहोत्र, सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती, हस्ती के यशोधरा से विकुंठन, विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़, अजमीढ़ से संवरण हुए, संवरण के ताप्ती से कुरु हुए, जिनके नाम से ये वंश 'कुरु वंश' कहलाया। कुरु के शुभांगी से विदुरथ हुए, विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा, अनाश्वा के अमृता से परीक्षित, परीक्षित के सुयशा से भीमसेन, भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा, प्रतिश्रावा से प्रतीप, प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक एवं शांतनु का जन्म हुआ। देवापि किशोरावस्था में ही संन्यासी हो गए एवं बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में लग गए। इसलिए सबसे छोटे पुत्र शांतनु को गद्दी मिली। शांतनु के गंगा से देवव्रत हुए, जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए।

भीष्म का वंश आगे नहीं बढ़ा, क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की थी। शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। लेकिन इनका वंश भी आगे नहीं चल सका। इस तरह कुरु की यह शाखा डूब गई, लेकिन दूसरी शाखाओं ने मगध पर राज किया और तीसरी शाखा ने ईरान पर।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कहीं-कहीं इनका नाम 'तपती' भी आता है।
  2. Achaemenid_empire

संबंधित लेख