मनुष्य न तो कर्मों का आरम्भ किये बिना निष्कर्मता को यानी योगनिष्ठा को प्राप्त होता है और न कर्मों के केवल त्याग मात्र से सिद्धि यानी सांख्यनिष्ठा को ही प्राप्त होता है ।।4।।
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Man does not attain freedom from action (culmination of the discipline of action) without entering upon action; nor does he reach perfection (culmination of the discipline of knowledge) merely by ceasing to act.(4)
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