गीता 3:30

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गीता अध्याय-3 श्लोक-30 / Gita Chapter-3 Verse-30

प्रसंग-


इस प्रकार <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को उनके कल्याण का निश्चित साधन बतलाते हुए भगवान् उन्हें युद्ध करने की आज्ञा देकर अब उसका अनुष्ठान करने के फल का वर्णन करते हैं-


मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा ।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वर: ।।30।।



मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझ में अर्पण करके आशा रहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर ।।30।।

Therefore, dedicating all actions to Me with your mind fixed on Me, the self of all freed from hope and the feeling of meum and cured of mental fever, fight. (30)


अध्यात्मचेतसा; = ध्याननिष्ठ चित्त से; सर्वाणि = संपूर्ण; कर्माणि = कर्मों को; मयि = मुझमें; संन्यस्य = समर्पण करके; निराशी: = आशारहित; निर्मम: = ममतारहित; भूत्वा = होकर; विगतज्वर: = सन्तापरहित(हुआ); युध्यस्व = युद्व कर;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)