जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे । इसलिये तथा लोक संग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने को ही योग्य है अर्थात् तुझे कर्म करना ही उचित है ।।20।।
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It is through action (without attachment) alone that janaka and other wise men reached perfection. Having an eye to maintenance of the world order too you should take to action.(20)
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