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{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र
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{{गंगा विषय सूची}}
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==गंगा का आर्थिक महत्त्व==
|चित्र का नाम=सदाशिवराव भाऊ
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[[चित्र:Ganga-Haridwar.jpg|thumb|250px|[[गंगा नदी]], [[हरिद्वार]]]]
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गंगा अपनी उपत्यकाओं में [[भारत]] और [[बांग्लादेश]] के कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है, यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः [[धान]], [[गन्ना]], [[दाल]], [[तिलहन]], [[आलू]] एवं [[गेहूँ]] हैं। जो भारत की कृषि आज का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल एवं झीलों के कारण यहाँ लेग्यूम, मिर्च, सरसों, तिल, गन्ना और जूट की अच्छी फ़सल होती है। नदी में मत्स्य उद्योग भी बहुत ज़ोरों पर चलता है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। इसमें लगभग 375 मत्स्य प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा [[उत्तर प्रदेश]] व [[बिहार]] में 111 मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है।<ref>{{cite web |url= http://fisheries.up.nic.in/manual.htm|title= प्रशिक्षण एवं प्रसार संबंधी मैनुअल|accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= 2007|month= |format= एचटीएम|work= |publisher= मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश |pages= |language=|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> फरक्का बांध बन जाने से गंगा नदी में हिल्सा मछली के बीजोत्पादन में सहायता मिली है। <ref>{{cite web |url= http://www.cifri.ernet.in/technology.html|title= हिल्सा ब्रीडिंग एण्ड हिल्साह हैचेरी|accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format= |work= |publisher= सी.आई.एफ.आर.आई.|pages= |language= अंग्रेज़ी|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> गंगा का महत्त्व पर्यटन पर आधारित आय के कारण भी है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तथा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल है जो राष्ट्रीय आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा नदी पर रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है। जो साहसिक खेलों और पर्यावरण द्वारा भारत के आर्थिक सहयोग में सहयोग करते हैं। गंगा तट के तीन बड़े शहर [[हरिद्वार]], [[इलाहाबाद]] एवं [[वाराणसी]] जो तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं। इस कारण यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या निरंतर बनी रहती है और धार्मिक पर्यटन में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। गर्मी के मौसम में जब पहाड़ों से बर्फ़ पिघलती है, तब नदी में पानी की मात्रा व बहाव अच्छा होता है, इस समय उत्तराखंड में ऋषिकेश - बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला से ऋषिकेश के मध्य रैफ्टिंग, क्याकिंग व कैनोइंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खोलों के शौक़ीनों और पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित कर के भारत के आर्थिक सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।<ref>{{cite web |url= http://www.uttara.in/hindi/gmvn/tourist/adv_sports/rafting.html|title= राफ्टिंग |accessmonthday=22 जून |accessyear=2009 |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= 2007|month= |format= एचटीएमएल|work= |publisher=उत्तराखंड पोर्टल|pages= |language=|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref>
|अन्य नाम=
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==बाँध एवं नदी परियोजनाएँ==
|जन्म=[[4 अगस्त]], 1730 ई.
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गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थ व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं फ़रक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध। फ़रक्का बांध (बैराज) भारत के [[पश्चिम बंगाल]] प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। इस बाँध का निर्माण [[कोलकाता]] बंदरगाह को गाद (सिल्ट) से मुक्त कराने के लिये किया गया था जो कि 1950 से 1960 तक इस बंदरगाह की प्रमुख समस्या थी। कोलकाता [[हुगली नदी]] पर स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरंतर बनाये रखने के लिये गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख बाँध टिहरी बाँध टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो [[उत्तराखंड]] प्रान्त के टिहरी ज़िले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवं उत्तरांचल को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख बाँध भीमगोडा बाँध [[हरिद्वार]] में स्थित है जिसको सन् 1840 में अंग्रेजो ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिये बनवाया था। यह नहर हरिद्वार के भीमगोडा नामक स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। प्रारम्‍भ में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी में एक अस्‍थायी बॉंध बनाकर की जाती थी। वर्षाकाल प्रारम्‍भ होते ही अस्‍थायी बॉंध टूट जाया करता था तथा मानसून अवधि में नहर में पानी चलाया जाता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी की फ़सलों की ही सिंचाई हो पाती थी। अस्‍थायी बॉंध निर्माण स्‍थल के डाउनस्‍ट्रीम में वर्ष 1978-1984 की अवधि में भीमगोडा बैराज का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली से खरीफ की फ़सल में भी पानी दिया जाने लगा।
|जन्म भूमि=
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==सिंचाई==
|मृत्यु तिथि=[[15 जनवरी]], 1761 ई.
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सिंचाई के लिए गंगा के पानी का उपयोग, चाहे बाढ़ का पानी हो या फिर नहरों का, पुरातन काल से ही प्रचलित है। इस तरह की सिंचाई का उल्लेख धर्मग्रन्थों तथा 2,000 से भी ज़्यादा वर्ष पहले लिखे [[पुराण|पुराणों]] में मिलता है। चौथी सदी में [[यूनान]] से भारत आए राजदूत [[मेगस्थनीज़]] ने यहाँ सिंचाई के उपयोग का उल्लेख किया है। 12वीं सदी से मुस्लिम काल में सिंचाई प्रणाली बहुत विकसित थी और [[मुग़ल]] बादशाहों ने बाद में बहुत सी नहरों का निर्माण किया। बाद में ब्रिटिश शासकों ने सिंचाई प्रणाली का और भी विस्तार किया।
|मृत्यु स्थान=
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उत्तर प्रदेश और [[बिहार]] स्थित गंगा घाटी के [[कृषि]] क्षेत्रों को सिंचाई नहरों की प्रणाली से बहुत लाभ हुआ है। ख़ासतौर से इस विकसित सिंचाई प्रणाली के कारण [[गन्ना]], कपास और तिलहन जैसी नक़दी फ़सलों की पैदावार में वृद्धि सम्भव हुई। पुरानी नहरें मुख्यत: गंगा-यमुना के दौआब इलाक़े में हैं। ऊपरी गंगा नहर [[हरिद्वार]] से शुरू होती है और अपनी सहायक नहरों सहित 9,524 किलोमीटर लम्बी है। निचली गंगा नहर की लम्बाई अपनी सहायक नहरों सहित 8,238 किलोमीटर है और यह नरोरा से प्रारम्भ होती है। [[शारदा नहर]] से उत्तर प्रदेश में [[अयोध्या]] की भूमि सींची जाती है। गंगा के उत्तर में भूमि की ऊँचाई अधिक होने से नहरों के द्वारा सिंचाई करना कठिन होने के कारण भूमिगत जल पम्प द्वारा खींचकर सतह पर लाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार के काफ़ी बड़े इलाक़े में हाथ से खोदे हुए [[कुआँ|कुओं]] से निकली नहरों के द्वारा सिंचाई की जाती है।
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|संबंधित लेख=[[शिवाजी]], [[शाहजी भोंसले]], [[शम्भाजी|शम्भाजी पेशवा]], [[बालाजी विश्वनाथ]], [[बाजीराव प्रथम]], [[बाजीराव द्वितीय]], [[राजाराम शिवाजी]][[दौलतराव शिन्दे]], [[नाना फड़नवीस]], [[दादोजी कोंडदेव]], [[मराठा साम्राज्य]]  
 
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|अन्य जानकारी=सदाशिवराव भाऊ शासन प्रबन्ध में बहुत ही कुशल था और मराठा साम्राज्य का समस्त शासन भार पेशवा ने उसी पर छोड़ दिया था।
 
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'''सदाशिवराव भाऊ''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sadashivrao Bhau'', जन्म: [[4 अगस्त]], 1730 ई.- मृत्यु: [[15 जनवरी]], 1761 ई. ) [[पेशवा]] [[बालाजी बाजीराव]] (1740-61 ई.) का चचेरा भाई था। वह शासन प्रबन्ध में बहुत ही कुशल था और [[मराठा साम्राज्य]] का समस्त शासन भार पेशवा ने उसी पर छोड़ दिया था।
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[[बांग्लादेश]] में गंगा-कबाडाक योजना मुख्यत: सिंचाई के लिए ही है और उसमें खुलना, जेशोर और कुश्तिया ज़िलों के वे हिस्से आते हैं, जो डेल्टा के कमज़ोर हिस्से हैं, जहाँ नदियों का मार्ग गाद और घनी झाड़ियों के कारण अवरुद्ध हो चुका है। इस इलाक़े में कुल वार्षिक वर्षा सामान्यत: 1,524 मिलीमीटर से कम होती है तथा शीत ऋतु तुलनात्मक रूप से शुष्क रहती है। यहाँ की सिंचाई प्रणाली भी नहरों तथा भूमिगत जल खींचने वाले विद्युतचालित उपकरणों पर आधारित है।
*सदाशिवराव ने [[मराठा|मराठों]] की विशाल सेना को [[यूरोप|यूरोपियन]] सेना के ढंग पर व्यवस्थित किया।
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==नौकायन==
*उसके पास [[इब्राहीम ख़ाँ गार्दी]] नामक [[मुसलमान]] सेनानायक के अधीन विशाल तोपख़ाना भी था।
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प्राचीन काल में गंगा और इसकी कुछ सहायक नदियाँ, ख़ासतौर से पूरब में, नौकायन के उपयुक्त थीं। मेगस्थनीज़ के अनुसार, चौथी शताब्दी ई. पू. में गंगा और इसकी प्रमुख सहायक नदियों में नौकायन होता था। गंगा के बेसिन में अंतर्देशीय नदी नौकायन 14वीं शताब्दी तक भी फल-फूल रहा था। 19वीं सदी के आते-आते सिंचाई तथा नौकायन के लिए उपयुक्त नहरों की जल परिवहन प्रणाली के प्रमुख मार्ग बन चुके थे। पैंडल स्टीमरों के आगमन से अंतर्देशीय परिवहन में भी जो क्रान्ति आई, उससे बंगाल और बिहार के नील उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला। गंगा में कलकत्ता से इलाहाबाद और उससे आगे यमुना में आगरा तक तथा उधर [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] तक नियमित स्टीमर सेवाएँ चलने लगीं।
*अपने इसी सैन्यबल के आधार पर सदाशिव भाऊ ने [[हैदराबाद]] के [[निज़ामशाही वंश|निज़ाम]] [[सलावतजंग]] को [[उदगिरि का युद्ध|उदगिरि के युद्ध]] में हरा कर भारी सफलता प्राप्त की।
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*इस विजय से उसकी प्रतिष्ठा इतनी बढ़ गई कि उसे शीघ्र ही [[पंजाब]] प्रान्त में [[अहमदशाह अब्दाली]] की बढ़ती हुई शक्ति को नष्ट कर मराठों की सत्ता स्थापित करने के लिए भेजा गया।
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19वीं सदी के मध्य में रेलमार्गों के बनने से बड़े पैमाने पर जल परिवहन में गिरावट शुरू हो गई। सिंचाई हेतु पानी बहुत अधिक मात्रा में खींच लिए जाने से भी नौकायन विपरीत रूप से प्रभावित हुआ। अब तो नौकायन केवल इलाहाबाद के आसपास के मध्य गंगा बेसिन तक ही सीमित होकर रह गया है, जिसमें से अधिकांश देसी नौकाओं पर आधारित हैं।
*सदाशिव भाऊ कूटनीति एवं युद्ध क्षेत्र दोनों में विफल रहा था। उसके दम्भी स्वभाव के फलस्वरूप [[जाट]] लोग विमुख हो गए तथा [[राजपूत|राजपूतों]] ने भी सक्रिय सहयोग नहीं दिया।
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*वह नवाब [[शुजाउद्दौला]] को भी अपने पक्ष में नहीं कर सका, हालाँकि [[मुग़ल]] बादशाह ने उसे अपना प्रतिनिधि बना रखा था।
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पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश अब भी [[जूट]], घास, [[चाय]], अनाज तथा अन्य कृषि और ग्रामीण उत्पादों के परिवहन के लिए जलमार्गों पर निर्भर हैं। बांग्लादेश में चालना, खुलना, बारीसाल, चाँदपुर, नारायणगंज, ग्वालंदो घाट, सिरसागंज, भैरव बाज़ार तथा फेंचूगंज और भारत में कोलकाता, गोलपाड़ा, [[धुबुरी]] और डिब्रूगढ़ प्रमुख नदी बंदरगाह हैं। [[1947]] में भारत के विभाजन से बड़े दूरगामी परिवर्तन हुए। कलकत्ता से [[असम]] तक अंतर्देशीय जलमार्गों के द्वारा पहले बड़े पैमाने पर होने वाला व्यापार लगभग बन्द ही हो गया।
*वह रणनीति में भी अब्दाली से मात खा गया। उसने आगे बढ़कर अब्दाली की फ़ौजों पर हमला करने के बजाये स्वयं उसके हमले का इंतज़ार किया।
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*इस प्रकार उसकी विशाल सेना को [[पानीपत]] के मैदान में, जहाँ पर उसने अपनी मोर्चेबन्दी कर रखी थी, अब्दाली की फ़ौजों ने घेर लिया।
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बांग्लादेश में अंतर्देशीय जल परिवहन की ज़िम्मेदारी अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण की है। भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का नीति निर्धारण केन्द्रीय अंतर्देशीय जल परिवहन मण्डल (सेंट्रल वॉटर ट्रांसपोर्ट बोर्ड) करता है। लेकिन राष्ट्रीय जलमार्गों की व्यापक प्रणाली का विकास एवं रख-रखाव अंतर्देशीय जलमार्ग (इनलैंड वॉटरवेज़ अथॉरिटी) प्राधिकरण करता है। गंगा के बेसिन में इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक लगभग 1,607 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग इस प्रणाली में शामिल है।
*15 जनवरी, 1761 ई. को सदाशिवराव भाऊ ने असाधारण वीरता दिखाई, किन्तु वह मारा गया।
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*इस युद्ध में पराजय से [[मराठा]] शक्ति को गहरा धक्का लगा और इसी आघात से [[पेशवा]] की भी मृत्यु हो गई।
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डेल्टा के मुख पर भारत की सीमा के ठीक भीतर फ़रक्का बाँध का निर्माण बांग्लादेश और भारत के बीच विवाद का कारण बन गया है। भारत का कहना है कि गाद के जमने तथा खारा पानी घुस आने की वजह से कोलकाता बंदरगाह का पतन हो गया है। कोलकाता की स्थिति में सुधार के लिए खारे पानी को निकालकर और जलस्तर को बढ़ाकर भारत ने फ़रक्का बैराज से गंगा को मोड़कर ताज़ा पानी हासिल करने की कोशिश की है। अब एक बड़ी नहर द्वारा पानी [[भागीरथी नदी]] में लाया जाता है, जो कोलकाता से परे [[हुगली नदी]] में समाहित होता है।
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बांग्लादेश का कहना है कि नदियों के तटवर्ती देशों की परस्पर समृद्धि के लिए यह ज़रूरी है कि अंतर्देशीय नदियों के पानी पर उनका संयुक्त नियंत्रण होना चाहिए। सिंचाई, नौकायन तथा खारे पानी की रोकथाम के लिए गंगा का पानी बांग्लादेश में भी उतना ही आवश्यक है, जितना भारत के लिए। बांग्लादेश के अनुसार, फ़रक्का बाँध ने उसे पानी के एक ऐसे बहुमूल्य स्रोत से वंचित कर दिया है, जो कि उसकी समृद्धि के लिए आवश्यक है। दूसरी तरफ़ [[भारत]] गंगाजल की समस्या के बारे में द्विपक्षीय रवैया अपनाये जाने के पक्ष में है। दोनों देशों के बीच कई अंतरिम समझौते हुए हैं, लेकिन अभी तक इस विवाद का कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है। भारत के असम में ब्रह्मपुत्र के पानी को बांग्लादेश से होकर एक नहर द्वारा गंगा में मोड़ने के प्रस्ताव के जवाब में बांग्लादेश ने सुझाया है कि पूर्वी [[नेपाल]], पश्चिम बंगाल होते हुए एक नहर बांग्लादेश तक बनाई जाए। किसी भी प्रस्ताव को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। [[1987]] तथा [[1988]] में बांग्लादेश में आई प्रलयंकारी बाढ़ों, जिसमें 1988 की बाढ़ उस देश के इतिहास की सर्वाधिक विनाशकारी बाढ़ थी, इसको देखते हुए विश्व बैंक ने इस क्षेत्र के लिए अब बाढ़ नियंत्रण की एक दूरगामी योजना बनाई है।
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==पनबिजली योजना==
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गंगा की लगभग 130 लाख किलोवाट की अनुमानित जलविद्युत क्षमता का 2/5 हिस्सा भारत में तथा शेष नेपाल में है। इस क्षमता में से कुछ का दोहन भारत ने [[चंबल नदी|चंबल]] और रिहंद नदियों द्वारा किया है।
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गंगा का मैदान दुनिया की सबसे घनी आबादी वाला तथा उपजाऊ इलाक़ों में से एक है। चूँकि इस मैदानी क्षेत्र में अवरोध न के बराबर है, इसीलिए गंगा की धारा अधिकांश इलाक़े में चौड़ी व धीमी गति से प्रवाहित है। उसके कुल अपवाह बेसिन का 9,75,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल, यानी भारत के कुल क्षेत्र का लगभग चौथाई हिस्सा है और उस पर लगभग 50 करोड़ की आबादी निर्भर करती है। इस बेसिन की भूमि पर गहन खेती होती है। गंगा प्रणाली की जलापूर्ति आंशिक रूप से जुलाई से अक्टूबर के बीच होने वाली मानसून की वर्षा और अप्रॅल से जून के बीच [[हिमालय]] पर गर्मी से पिघलने वाली बर्फ़ पर निर्भर करती हैं।
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भारतीय उपमहाद्वीप का यह विस्तृत उत्तर-मध्य खण्ड, जिसे उत्तर भारतीय मैदान भी कहा जाता है, पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी और गंगा के डेल्टा से लेकर [[सिंधु नदी|सिंधु नदी घाटी]] तक फैला हुआ है। इस इलाक़े में इस उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध और सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। इस मैदान का अधिकांश हिस्सा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा पूर्व में सिंध नदी द्वारा पश्चिम में बहकर लाई गई कछारी मिट्टी से बना हुआ है। मैदान के पूर्वी हिस्सों में कम बारिश या सर्दियाँ शुष्क होती हैं। किन्तु [[मानसून]] की वर्षा इतनी अधिक होती है कि बड़े-बड़े इलाक़ों में दलदल या उथली झीलें बन जाती हैं। ज्यों-ज्यों पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, यह मैदान शुष्क होता चला जाता है और अन्त में थार के रेगिस्तान में बदल जाता है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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07:56, 21 मई 2016 का अवतरण

गंगा विषय सूची

गंगा का आर्थिक महत्त्व

गंगा अपनी उपत्यकाओं में भारत और बांग्लादेश के कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है, यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवं गेहूँ हैं। जो भारत की कृषि आज का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल एवं झीलों के कारण यहाँ लेग्यूम, मिर्च, सरसों, तिल, गन्ना और जूट की अच्छी फ़सल होती है। नदी में मत्स्य उद्योग भी बहुत ज़ोरों पर चलता है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। इसमें लगभग 375 मत्स्य प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेशबिहार में 111 मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है।[1] फरक्का बांध बन जाने से गंगा नदी में हिल्सा मछली के बीजोत्पादन में सहायता मिली है। [2] गंगा का महत्त्व पर्यटन पर आधारित आय के कारण भी है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तथा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल है जो राष्ट्रीय आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा नदी पर रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है। जो साहसिक खेलों और पर्यावरण द्वारा भारत के आर्थिक सहयोग में सहयोग करते हैं। गंगा तट के तीन बड़े शहर हरिद्वार, इलाहाबाद एवं वाराणसी जो तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं। इस कारण यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या निरंतर बनी रहती है और धार्मिक पर्यटन में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। गर्मी के मौसम में जब पहाड़ों से बर्फ़ पिघलती है, तब नदी में पानी की मात्रा व बहाव अच्छा होता है, इस समय उत्तराखंड में ऋषिकेश - बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला से ऋषिकेश के मध्य रैफ्टिंग, क्याकिंग व कैनोइंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खोलों के शौक़ीनों और पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित कर के भारत के आर्थिक सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।[3]

बाँध एवं नदी परियोजनाएँ

गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थ व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं फ़रक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध। फ़रक्का बांध (बैराज) भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। इस बाँध का निर्माण कोलकाता बंदरगाह को गाद (सिल्ट) से मुक्त कराने के लिये किया गया था जो कि 1950 से 1960 तक इस बंदरगाह की प्रमुख समस्या थी। कोलकाता हुगली नदी पर स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरंतर बनाये रखने के लिये गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख बाँध टिहरी बाँध टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो उत्तराखंड प्रान्त के टिहरी ज़िले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवं उत्तरांचल को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख बाँध भीमगोडा बाँध हरिद्वार में स्थित है जिसको सन् 1840 में अंग्रेजो ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिये बनवाया था। यह नहर हरिद्वार के भीमगोडा नामक स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। प्रारम्‍भ में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी में एक अस्‍थायी बॉंध बनाकर की जाती थी। वर्षाकाल प्रारम्‍भ होते ही अस्‍थायी बॉंध टूट जाया करता था तथा मानसून अवधि में नहर में पानी चलाया जाता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी की फ़सलों की ही सिंचाई हो पाती थी। अस्‍थायी बॉंध निर्माण स्‍थल के डाउनस्‍ट्रीम में वर्ष 1978-1984 की अवधि में भीमगोडा बैराज का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली से खरीफ की फ़सल में भी पानी दिया जाने लगा।

सिंचाई

सिंचाई के लिए गंगा के पानी का उपयोग, चाहे बाढ़ का पानी हो या फिर नहरों का, पुरातन काल से ही प्रचलित है। इस तरह की सिंचाई का उल्लेख धर्मग्रन्थों तथा 2,000 से भी ज़्यादा वर्ष पहले लिखे पुराणों में मिलता है। चौथी सदी में यूनान से भारत आए राजदूत मेगस्थनीज़ ने यहाँ सिंचाई के उपयोग का उल्लेख किया है। 12वीं सदी से मुस्लिम काल में सिंचाई प्रणाली बहुत विकसित थी और मुग़ल बादशाहों ने बाद में बहुत सी नहरों का निर्माण किया। बाद में ब्रिटिश शासकों ने सिंचाई प्रणाली का और भी विस्तार किया। उत्तर प्रदेश और बिहार स्थित गंगा घाटी के कृषि क्षेत्रों को सिंचाई नहरों की प्रणाली से बहुत लाभ हुआ है। ख़ासतौर से इस विकसित सिंचाई प्रणाली के कारण गन्ना, कपास और तिलहन जैसी नक़दी फ़सलों की पैदावार में वृद्धि सम्भव हुई। पुरानी नहरें मुख्यत: गंगा-यमुना के दौआब इलाक़े में हैं। ऊपरी गंगा नहर हरिद्वार से शुरू होती है और अपनी सहायक नहरों सहित 9,524 किलोमीटर लम्बी है। निचली गंगा नहर की लम्बाई अपनी सहायक नहरों सहित 8,238 किलोमीटर है और यह नरोरा से प्रारम्भ होती है। शारदा नहर से उत्तर प्रदेश में अयोध्या की भूमि सींची जाती है। गंगा के उत्तर में भूमि की ऊँचाई अधिक होने से नहरों के द्वारा सिंचाई करना कठिन होने के कारण भूमिगत जल पम्प द्वारा खींचकर सतह पर लाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार के काफ़ी बड़े इलाक़े में हाथ से खोदे हुए कुओं से निकली नहरों के द्वारा सिंचाई की जाती है।

बांग्लादेश में गंगा-कबाडाक योजना मुख्यत: सिंचाई के लिए ही है और उसमें खुलना, जेशोर और कुश्तिया ज़िलों के वे हिस्से आते हैं, जो डेल्टा के कमज़ोर हिस्से हैं, जहाँ नदियों का मार्ग गाद और घनी झाड़ियों के कारण अवरुद्ध हो चुका है। इस इलाक़े में कुल वार्षिक वर्षा सामान्यत: 1,524 मिलीमीटर से कम होती है तथा शीत ऋतु तुलनात्मक रूप से शुष्क रहती है। यहाँ की सिंचाई प्रणाली भी नहरों तथा भूमिगत जल खींचने वाले विद्युतचालित उपकरणों पर आधारित है।

नौकायन

प्राचीन काल में गंगा और इसकी कुछ सहायक नदियाँ, ख़ासतौर से पूरब में, नौकायन के उपयुक्त थीं। मेगस्थनीज़ के अनुसार, चौथी शताब्दी ई. पू. में गंगा और इसकी प्रमुख सहायक नदियों में नौकायन होता था। गंगा के बेसिन में अंतर्देशीय नदी नौकायन 14वीं शताब्दी तक भी फल-फूल रहा था। 19वीं सदी के आते-आते सिंचाई तथा नौकायन के लिए उपयुक्त नहरों की जल परिवहन प्रणाली के प्रमुख मार्ग बन चुके थे। पैंडल स्टीमरों के आगमन से अंतर्देशीय परिवहन में भी जो क्रान्ति आई, उससे बंगाल और बिहार के नील उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला। गंगा में कलकत्ता से इलाहाबाद और उससे आगे यमुना में आगरा तक तथा उधर ब्रह्मपुत्र तक नियमित स्टीमर सेवाएँ चलने लगीं।

19वीं सदी के मध्य में रेलमार्गों के बनने से बड़े पैमाने पर जल परिवहन में गिरावट शुरू हो गई। सिंचाई हेतु पानी बहुत अधिक मात्रा में खींच लिए जाने से भी नौकायन विपरीत रूप से प्रभावित हुआ। अब तो नौकायन केवल इलाहाबाद के आसपास के मध्य गंगा बेसिन तक ही सीमित होकर रह गया है, जिसमें से अधिकांश देसी नौकाओं पर आधारित हैं।

पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश अब भी जूट, घास, चाय, अनाज तथा अन्य कृषि और ग्रामीण उत्पादों के परिवहन के लिए जलमार्गों पर निर्भर हैं। बांग्लादेश में चालना, खुलना, बारीसाल, चाँदपुर, नारायणगंज, ग्वालंदो घाट, सिरसागंज, भैरव बाज़ार तथा फेंचूगंज और भारत में कोलकाता, गोलपाड़ा, धुबुरी और डिब्रूगढ़ प्रमुख नदी बंदरगाह हैं। 1947 में भारत के विभाजन से बड़े दूरगामी परिवर्तन हुए। कलकत्ता से असम तक अंतर्देशीय जलमार्गों के द्वारा पहले बड़े पैमाने पर होने वाला व्यापार लगभग बन्द ही हो गया।

बांग्लादेश में अंतर्देशीय जल परिवहन की ज़िम्मेदारी अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण की है। भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का नीति निर्धारण केन्द्रीय अंतर्देशीय जल परिवहन मण्डल (सेंट्रल वॉटर ट्रांसपोर्ट बोर्ड) करता है। लेकिन राष्ट्रीय जलमार्गों की व्यापक प्रणाली का विकास एवं रख-रखाव अंतर्देशीय जलमार्ग (इनलैंड वॉटरवेज़ अथॉरिटी) प्राधिकरण करता है। गंगा के बेसिन में इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक लगभग 1,607 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग इस प्रणाली में शामिल है।

डेल्टा के मुख पर भारत की सीमा के ठीक भीतर फ़रक्का बाँध का निर्माण बांग्लादेश और भारत के बीच विवाद का कारण बन गया है। भारत का कहना है कि गाद के जमने तथा खारा पानी घुस आने की वजह से कोलकाता बंदरगाह का पतन हो गया है। कोलकाता की स्थिति में सुधार के लिए खारे पानी को निकालकर और जलस्तर को बढ़ाकर भारत ने फ़रक्का बैराज से गंगा को मोड़कर ताज़ा पानी हासिल करने की कोशिश की है। अब एक बड़ी नहर द्वारा पानी भागीरथी नदी में लाया जाता है, जो कोलकाता से परे हुगली नदी में समाहित होता है।

बांग्लादेश का कहना है कि नदियों के तटवर्ती देशों की परस्पर समृद्धि के लिए यह ज़रूरी है कि अंतर्देशीय नदियों के पानी पर उनका संयुक्त नियंत्रण होना चाहिए। सिंचाई, नौकायन तथा खारे पानी की रोकथाम के लिए गंगा का पानी बांग्लादेश में भी उतना ही आवश्यक है, जितना भारत के लिए। बांग्लादेश के अनुसार, फ़रक्का बाँध ने उसे पानी के एक ऐसे बहुमूल्य स्रोत से वंचित कर दिया है, जो कि उसकी समृद्धि के लिए आवश्यक है। दूसरी तरफ़ भारत गंगाजल की समस्या के बारे में द्विपक्षीय रवैया अपनाये जाने के पक्ष में है। दोनों देशों के बीच कई अंतरिम समझौते हुए हैं, लेकिन अभी तक इस विवाद का कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है। भारत के असम में ब्रह्मपुत्र के पानी को बांग्लादेश से होकर एक नहर द्वारा गंगा में मोड़ने के प्रस्ताव के जवाब में बांग्लादेश ने सुझाया है कि पूर्वी नेपाल, पश्चिम बंगाल होते हुए एक नहर बांग्लादेश तक बनाई जाए। किसी भी प्रस्ताव को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। 1987 तथा 1988 में बांग्लादेश में आई प्रलयंकारी बाढ़ों, जिसमें 1988 की बाढ़ उस देश के इतिहास की सर्वाधिक विनाशकारी बाढ़ थी, इसको देखते हुए विश्व बैंक ने इस क्षेत्र के लिए अब बाढ़ नियंत्रण की एक दूरगामी योजना बनाई है।

पनबिजली योजना

गंगा की लगभग 130 लाख किलोवाट की अनुमानित जलविद्युत क्षमता का 2/5 हिस्सा भारत में तथा शेष नेपाल में है। इस क्षमता में से कुछ का दोहन भारत ने चंबल और रिहंद नदियों द्वारा किया है। गंगा का मैदान दुनिया की सबसे घनी आबादी वाला तथा उपजाऊ इलाक़ों में से एक है। चूँकि इस मैदानी क्षेत्र में अवरोध न के बराबर है, इसीलिए गंगा की धारा अधिकांश इलाक़े में चौड़ी व धीमी गति से प्रवाहित है। उसके कुल अपवाह बेसिन का 9,75,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल, यानी भारत के कुल क्षेत्र का लगभग चौथाई हिस्सा है और उस पर लगभग 50 करोड़ की आबादी निर्भर करती है। इस बेसिन की भूमि पर गहन खेती होती है। गंगा प्रणाली की जलापूर्ति आंशिक रूप से जुलाई से अक्टूबर के बीच होने वाली मानसून की वर्षा और अप्रॅल से जून के बीच हिमालय पर गर्मी से पिघलने वाली बर्फ़ पर निर्भर करती हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप का यह विस्तृत उत्तर-मध्य खण्ड, जिसे उत्तर भारतीय मैदान भी कहा जाता है, पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी और गंगा के डेल्टा से लेकर सिंधु नदी घाटी तक फैला हुआ है। इस इलाक़े में इस उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध और सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। इस मैदान का अधिकांश हिस्सा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा पूर्व में सिंध नदी द्वारा पश्चिम में बहकर लाई गई कछारी मिट्टी से बना हुआ है। मैदान के पूर्वी हिस्सों में कम बारिश या सर्दियाँ शुष्क होती हैं। किन्तु मानसून की वर्षा इतनी अधिक होती है कि बड़े-बड़े इलाक़ों में दलदल या उथली झीलें बन जाती हैं। ज्यों-ज्यों पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, यह मैदान शुष्क होता चला जाता है और अन्त में थार के रेगिस्तान में बदल जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रशिक्षण एवं प्रसार संबंधी मैनुअल (एचटीएम) मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश (2007)।
  2. हिल्सा ब्रीडिंग एण्ड हिल्साह हैचेरी (अंग्रेज़ी) सी.आई.एफ.आर.आई.।
  3. राफ्टिंग (एचटीएमएल) उत्तराखंड पोर्टल (2007)। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009।

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