निर्विन्ध्या
निर्विन्ध्या विख्यात महाकवि कालिदास के 'मेघदूत'[1] में वर्णित एक नदी का नाम है। कालिदास ने मेघदूत में इस नदी का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है-
'वीचिक्षोभस्तवित्तविहगश्रेणिकांचीगुणाया:, ससर्पन्त्या: स्खलितसुभगं दर्शितादर्तनाभे: निर्विन्ध्याया: पथिभवरसाभ्यंतर: सन्निपत्य स्त्रीणागाद्यं प्रणयवचनं विभ्रमो हि प्रयेषु'।
भौगोलिक तथ्य
यह नदी मेघ के यात्रा क्रम में विदिशा और उज्जयिनी के मार्ग में वर्णित है तथा इसकी स्थिति कालिदास के अनुसार सिंधु नदी और उज्जयिनी के ठीक पूर्व में बताई गई है। संभव है कि कालिदास ने वर्तमान पार्वती नदी को ही 'निर्विन्ध्या' कहा हो। पार्वती नदी उज्जैन से पूर्व, विंध्य श्रेणी से निस्सृत होकर चंबल नदी में मिलती है। विदिशा और सिंधु[2] के बीच कोई और उल्लेखनीय नदी नहीं जान पड़ती। श्रीमद्भागवत[3] की नदी सूची में भी निर्विन्ध्या का नामोल्लेख है-
'कृष्णावेश्या भीमरथी गोदावरी निर्विन्ध्या पयोष्णी तापी रेवा...'
पौराणिक उल्लेख
विष्णु पुराण में निर्विन्ध्या को 'तापी' (ताप्ती नदी) और पयोष्णी के साथ ही 'ऋक्ष' (अमरकंटक) से निर्गत बताया है-
'तापीपयोष्णी निर्विन्ध्या प्रमुखा ऋक्षसंभवा:' विष्णु पुराण[4]
कुछ विद्वानों ने निर्विन्ध्या नदी का चंबल की सहायक एक छोटी-सी नदी नेवाज से किया है।[5] वायु पुराण[6] में इस नदी को निर्विन्ध्या कहा गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 501 |
- ↑ पूर्वमेघ, 30
- ↑ (=काली सिंध)
- ↑ श्रीमद्भागवत 5, 9, 18
- ↑ विष्णु पुराण 2, 3, 31.
- ↑ बी.सी. ला-हिस्टोरिकल ज्योग्रेफ़ी ऑफ़ ऐंशेट इंडिया, पृष्ठ 35
- ↑ वायु पुराण 65, 102
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