जो पुरुष सब भूतों में द्वेषभाव से रहित, स्वार्थरहित, सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालु है तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख-दुखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान् है अर्थात् उपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है; तथा जो योगी निरन्तर संतुष्ट है, मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किये हुए है और मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है- वह मुझमें अर्पण किये हुए मन-बुद्धि निश्चय वाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है ।।13-14।।
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He who is free from malice towards all beings, friendly and compassionate, rid of ‘I’ and ‘mine’ , balanced in joy and sorrow, forgiving by nature, ever-contented and mentally united with me, nay, who has subdued his mind, senses and body, has a firm resolve, and has surrendered his mind and reason to me, that devotee of mine is dear to me. (13,14)
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