जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयं भी किसी जीव से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता; तथा जो हर्ष, अमर्ष, भय और उद्वेगादि से रहित है- वह भक्त मुझको प्रिय है ।।15।।
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He who is not a source of annoyance to his fellow-creatures, and who in his turn does not feel vexed with fellow-creatures, and who is free from delight and envy perturbation and fear, is dear to me. (15)
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