गीता 17:19

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

गीता अध्याय-17 श्लोक-19 / Gita Chapter-17 Verse-19

प्रसंग-


अब तामस तप के लक्षण बतलाते हैं, जो कि सर्वथा त्याज्य हैं-


मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तप: ।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम् ।।19।।



जो तप मूढतापूर्वक हठ से, मन, वाणी और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दूसरे का अनिष्ट करने के लिये किया जाता है- वह तप तामस कहा गया है ।।19।।

Austerity which is practised through perversity and is accompanied with self-mortification or is intended to harm others, such austerity has been declared as Tamasika (19)


यत् = जो ; तप: = तप ; मूढग्राहेण = मूढतापूर्वक हठसे ; आत्मन: = मन वाणी और शरीर की ; पीडया = पीडा के सहित ; वा = अथवा ; परस्य = दूसरे का ; उत्सादनार्थम् = अनिष्ट करने के लिये ; क्रियते = किया जाता है ; तत् = वह (तप) ; तामसम् = तामस ; उदाहृतम् = कहा गया है



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख