"गीता 4:35" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - " मे " to " में ")
छो (Text replace - "महत्व" to "महत्त्व")
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
'''प्रसंग-'''
 
'''प्रसंग-'''
 
----
 
----
इस प्रकार गुरुजनों से तत्त्व ज्ञान सीखने की विधि और उसका फल बतलाकर अब उसका महत्व बतलाते हैं-
+
इस प्रकार गुरुजनों से तत्त्व ज्ञान सीखने की विधि और उसका फल बतलाकर अब उसका महत्त्व बतलाते हैं-
 
----
 
----
 
<div align="center">
 
<div align="center">

10:27, 13 मार्च 2011 का अवतरण

गीता अध्याय-4 श्लोक-35 / Gita Chapter-4 Verse-35

प्रसंग-


इस प्रकार गुरुजनों से तत्त्व ज्ञान सीखने की विधि और उसका फल बतलाकर अब उसका महत्त्व बतलाते हैं-


यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।
येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ।।35।।




जिसको जानकर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! जिस ज्ञान के द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को नि:शेष भाव से पहले अपने में और पीछे मुझ सच्चिदानन्दमय परमात्मा में देखेगा ।।35।।


Arjuna, when you have reached enlightenment, ignorance will delude you no more. In the light of that knowledge you will see the entire creation first within your own self, and then in Me (the oversoul)(35)


यत् = जिसको; ज्ञात्वा = जानकर (तूं); पुन: = फिर; एवम् = इस प्रकार; मोहम् = मोह को; यास्यसि = प्राप्त होगा(और); पाण्डव = हे अर्जुन; येन = जिस ज्ञान के द्वारा(सर्वव्यापी अनन्त चेतन रूप हुआ); आत्मनि = अपने अन्तर्गत समष्टि बुद्वि के आधार; अशेषेण = संपूर्ण; भूतानि = भूतों को; द्रक्ष्यसि = देखेगा (और); अथो = उसके उपरान्त; मयि = मेंरे में अर्थात् सच्चिदानन्द स्वरूप में एकी भाव हुआ सच्चिनन्दमय ही देखेगा।



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)