अश्वसेन तक्षक नामक नाग का पुत्र था। अग्नि देव की प्रार्थना पर जब पाण्डव अर्जुन ने खांडव वन जलाया तो अश्वसेन की माता ने उसे अपने मुँह में निगल लिया और बचाने की कोशिश की। वह आकाश मार्ग से भागने लगी तो अर्जुन ने उसके फन पर बाण मारा। अश्वसेन की माता तो मर गई, किंतु अश्वसेन बचकर निकल भागा। अर्जुन से माता की हत्या का बदला लेने हेतु अश्वसेन महाभारत के युद्ध में कर्ण के धनुष पर चढ़ा था।
प्रतिशोध की भावना
महाभारत के युद्ध में कर्ण ने अर्जुन को मार गिराने की प्रतिज्ञा की थी। उसे सफल बनाने के लिए खांडव वन के महासर्प अश्वसेन ने अर्जुन से प्रतिशोध लेने का यही उपयुक्त अवसर समझा। वह पांडवों के प्रति दुर्भावना इसलिए रखता था, क्योंकि उसका संपूर्ण परिवार पांडवों द्वारा लगाई गई आग में भस्म हो गया था। अश्वसेन ने सोचा कि अर्जुन की मृत्यु से पांडवों का आधा बल क्षीण हो जाएगा। अत: वह दानवीर कर्ण के तरकश में बाण बनकर प्रवेश कर गया। उसकी योजना यह थी कि जब उसे धनुष पर चढ़ा कर अर्जुन पर छोड़ा जाएगा तो वह डसकर अर्जुन के प्राण ले लेगा।
श्रीकृष्ण की दूरदृष्टि
युद्ध में जब कर्ण ने वह बाण चलाया तो श्रीकृष्ण ने अपनी दूरदृष्टि और से इस बात का अन्दाजा लगा लिया। अत: जैसे ही कर्ण ने वह बाण छोड़ा, श्रीकृष्ण ने रथ के घोड़ों को जमीन पर बैठा दिया। बाण अर्जुन का मुकुट काटता हुआ ऊपर से निकल गया। अपनी असफलता से क्षुब्ध अश्वसेन ने कर्ण के सामने प्रकट होकर कहा- "अब की बार मुझे साधारण तीर की भांति मत चलाना। कर्ण ने आश्चर्य से पूछा- "आप कौन हैं?"
कर्ण का कथन
कर्ण के पूछने पर अश्वसेन ने अपने परिवार के समाप्त होने के बारे में बताते हुए कहा कि- "मैं अर्जुन से प्रतिशोध लेना चाहता हूँ"। कर्ण ने उसकी सहायता के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा- "भद्र! मुझे अपने ही पुरुषार्थ से नीति युद्ध लड़ने दीजिए। आपकी अनीतियुक्त छद्म सहायता लेकर जीतने से तो हारना अच्छा है।" कर्ण की नीति-निष्ठा देख अश्वसेन खांडव वन लौट गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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