"गीता 1:24-25" के अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}") |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 23: | ||
|- | |- | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | '''< | + | '''[[संजय]]<ref>संजय [[धृतराष्ट्र]] की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।</ref> बोले''' |
− | |||
− | |||
---- | ---- | ||
− | हे < | + | हे [[धृतराष्ट्र]]<ref>धृतराष्ट्र [[पाण्डु]] के बड़े भाई थे। [[गाँधारी]] इनकी पत्नी थी और [[कौरव]] इनके पुत्र। वे पाण्डु के बाद [[हस्तिनापुर]] के राजा बने थे।</ref> ! [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वह [[द्रोणाचार्य]] का सबसे प्रिय शिष्य था। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में जीतने वाला भी वही था।</ref> द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> चन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में [[भीष्म]]<ref>भीष्म [[महाभारत]] के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। ये महाराजा [[शांतनु]] के पुत्र थे। अपने [[पिता]] को दिये गये वचन के कारण इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।</ref> और [[द्रोणाचार्य]]<ref>द्रोणाचार्य [[कौरव]] और पांडवों के गुरु थे। कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम में ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी। [[अर्जुन]] द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।</ref> के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन [[कौरव|कौरवों]]<ref>[[गान्धारी]] और [[धृतराष्ट्र]] के सौ पुत्र कौरव कहलाते हैं। [[दुर्योधन]] इनमें सबसे बड़ा था।</ref> को देख ।।24-25।। |
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
पंक्ति 74: | पंक्ति 61: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
− | + | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |
+ | <references/> | ||
+ | ==संबंधित लेख== | ||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
12:46, 3 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-24,25 / Gita Chapter-1 Verse-24,25
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
||||