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− | भगवान् ने सारे जगत् को त्रिगुणमय भावों से मोहित | + | भगवान् ने सारे जगत् को त्रिगुणमय भावों से मोहित बतलाया। इस बात को सुनकर [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को यह जानने की इच्छा हुई कि फिर इससे छूटने का कोई उपाय है या नहीं? अन्तर्यामी दयामय भगवान् इस बात को समझकर अब अपनी माया को दुस्तर बतलाते हुए उसे तरने का उपाय सूचित कर रहे हैं- |
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08:01, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-7 श्लोक-13 / Gita Chapter-7 Verse-13
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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