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− | इस प्रकार ब्रह्मभूत योगी को परा भक्ति की प्राप्ति बतलाकर अब उसका फल बतलाते हैं- | + | इस प्रकार ब्रह्मभूत योगी को परा [[भक्ति]] की प्राप्ति बतलाकर अब उसका फल बतलाते हैं- |
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− | उस पर भक्ति के द्वारा वह मुझ परमात्मा को , मैं जो हूँ और जितना हूँ ठीक वैसा-का वैसा | + | उस पर भक्ति के द्वारा वह मुझ परमात्मा को, मैं जो हूँ और जितना हूँ ठीक वैसा-का वैसा तत्त्व से जान लेता है; तथा उस भक्ति से मुझ को तत्त्व से जानकर तत्काल ही मुझमें प्रविष्ट हो जाता है ।।55।। |
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06:31, 7 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-55 / Gita Chapter-18 Verse-55
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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