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− | पूर्व श्लोक में यह बात कही गयी कि भगवान् के मन के अनुसार न चलने वाला नष्ट हो जाता है; इस पर यह जिज्ञासा होती है कि यदि कोई भगवान् के मन के अनुसार कर्म न करके हठपूर्वक कर्मों का सर्वथा त्याग कर दे तो क्या हानि है ? इस पर कहते हैं- | + | पूर्व [[श्लोक]] में यह बात कही गयी कि भगवान् के मन के अनुसार न चलने वाला नष्ट हो जाता है; इस पर यह जिज्ञासा होती है कि यदि कोई भगवान् के मन के अनुसार कर्म न करके हठपूर्वक कर्मों का सर्वथा त्याग कर दे तो क्या हानि है ? इस पर कहते हैं- |
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10:45, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-32 / Gita Chapter-3 Verse-32
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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