एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

"गीता 17:9" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<tr>
 
<tr>
पंक्ति 9: पंक्ति 8:
 
'''प्रसंग-'''
 
'''प्रसंग-'''
 
----
 
----
ग्रहण करने योग्य सात्त्विक पुरुषों के आहार का वर्णन करके अब अगले दो श्लोकों में त्याग करने योग्य राजस और तामस पुरुषों के आहार का वर्णन करते हैं
+
ग्रहण करने योग्य सात्त्विक पुरुषों के आहार का वर्णन करके अब अगले दो [[श्लोक|श्लोकों]] में त्याग करने योग्य राजस और तामस पुरुषों के आहार का वर्णन करते हैं
 
----
 
----
 
<div align="center">
 
<div align="center">
पंक्ति 56: पंक्ति 55:
 
<tr>
 
<tr>
 
<td>
 
<td>
{{प्रचार}}
+
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 +
<references/>
 +
==संबंधित लेख==
 
{{गीता2}}
 
{{गीता2}}
 
</td>
 
</td>

12:49, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-17 श्लोक-9 / Gita Chapter-17 Verse-9

प्रसंग-


ग्रहण करने योग्य सात्त्विक पुरुषों के आहार का वर्णन करके अब अगले दो श्लोकों में त्याग करने योग्य राजस और तामस पुरुषों के आहार का वर्णन करते हैं


कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिन: ।
आहारा राजसस्येष्टा दु:खशोकामयप्रदा: ।।9।।



कड़वे, खट्टे, लवण युक्त, बहुत गरम, तीखे, रूखे, दाहकारक और दु:ख, चिन्ता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं।।9।।

Foods which are bitter, acid, salty, overhot, pungent, dry and burning, and which cause suffering, grief and sickness, are dear to the Rajasika type of men.(9)


कटु = कडुवे ; अम्ल = खट्टे ; लबण = लवणयुक्त (और) ; अत्युष्ण = अति गरम ; तीक्ष्ण = तीक्ष्ण ; रूक्ष = रूखे (और) ; विदाहिन: = दाहकारक (एवं) ; दु:खशोकामयप्रदा: = दु:ख चिन्ता और रोगों को उत्पन्न करने वाले ; आहारा: = आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ ; राजसस्य = राजस पुरुष को ; इष्टा: = प्रिय होते हैं



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख