गीता 11:52

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गीता अध्याय-11 श्लोक-52 / Gita Chapter-11 Verse-52

प्रसंग-


इस प्रकार <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के वचन सुनकर अब भगवान् दो श्लोकों द्वारा अपने चतुर्भुज देवरूप के दर्शन की दुर्लभता और उसकी महिमा का वर्णन करते हैं-


श्रीभगवानुवाच
सुदुर्दर्शमिदं रूपं दुष्टवानसि यन्मम ।
देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिण: ।।52।।



श्रीभगवान् बोले-


मेरा जो चतुर्भुज रूप तुमने देखा है, यह सुदुर्दश है अर्थात् इसके दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं । देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं ।।52।।

Shri Bhagavan said-


This form of mine (with four arms) which you have just seen is exceedingly difficult to perceive. Even the gods are always eager to behold this form. (52)


इदम् = यह; रूपम् = (चतुर्भुज) रूप; सुदुर्दर्शम् = देखने को अति दुर्लभ है (कि); यत् = जिसको(तुमने); दृष्टवानसि = देखा है; (यतJ = क्योंकि; अपि = भी; नित्यम् = सदा; दर्शनकाडिण: = दर्शन करने की इच्छावाले हैं;



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)