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गीता 6:2

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गीता अध्याय-6 श्लोक-2 / Gita Chapter-6 Verse-2

प्रसंग-


कर्मयोग की प्रशंसा करके अब उसका साधन बतलाते हैं-


यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव ।
न ह्रासंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन ।।2।।




हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! जिसको संन्यास ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग जान । क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता ।।2।।


Arjuna, you must know that what they call samnyasa is no other than yoga; for none become a yogi, who has not given up thoughts of the world. (2)


पाण्डव = हे अर्जुन: यम् = जिसको; संन्यासम् = संन्यास; इति = ऐसा; प्राहु: = कहते हैं; तम् = उसी को(तूं); योगम् =योग; विद्वि = ज्ञान; हि = क्योंकि; असंन्यस्त = संकल्पों को न त्यागने वाला; कश्वन = कोई भी पुरुष; भवति = योगी;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
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