गीता 6:2

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 2 मई 2015 का अवतरण (Text replace - "संन्यास" to "सन्न्यास")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

गीता अध्याय-6 श्लोक-2 / Gita Chapter-6 Verse-2

प्रसंग-


कर्मयोग की प्रशंसा करके अब उसका साधन बतलाते हैं-


यं सन्न्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव ।
न ह्रासंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन ।।2।।




हे अर्जुन[1] ! जिसको सन्न्यास ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग जान। क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता ।।2।।


Arjuna, you must know that what they call samnyasa is no other than yoga; for none become a yogi, who has not given up thoughts of the world. (2)


पाण्डव = हे अर्जुन: यम् = जिसको; सन्न्यासम् = सन्न्यास; इति = ऐसा; प्राहु: = कहते हैं; तम् = उसी को(तूं); योगम् =योग; विद्वि = ज्ञान; हि = क्योंकि; असंन्यस्त = संकल्पों को न त्यागने वाला; कश्वन = कोई भी पुरुष; भवति = योगी;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख