अष्टादशोऽध्याय प्रसंग-
जन्म-मरण रूप संसार के बंधन से सदा के लिये छूटकर परमानन्द स्वरूप परमात्मा को प्राप्त कर लेने का नाम मोक्ष है; इस अध्याय में पूर्वोक्त समस्त अध्यायों का सार संग्रह करके मोक्ष के उपायभूत सांख्ययोग का संन्यास के नाम से और कर्मयोग का त्याग के नाम से अंग-प्रत्यंगों सहित वर्णन किया गया है, इसीलिये तथा साक्षात् मोक्षरूप परमेश्वर में सर्व कर्मों का संन्यास यानी त्याग करने के लिये कहकर उपदेश का उपसंहार किया गया है, इसलिये भी इस अध्याय का नाम 'मोक्षसंन्यासयोग' रखा गया है ।
प्रसंग-
अर्जुन[1] इस अठारहवें अध्याय में समस्त अध्यायों के उपदेश का सार जानने के उद्देश्य से भगवान् के सामने संन्यास यानी ज्ञान योग का और त्याग यानी फलासक्ति के त्याग रूप कर्मयोग का तत्त्व भली-भाँति अलग-अलग जानने की इच्छा प्रकट करते हैं-
अर्जुन उवाच-
संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् ।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ।।1।।
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