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− | < | + | [[पाण्डव|पाण्डवों]]<ref>पांडव [[कुन्ती]] के पुत्र थे। इनके नाम [[युधिष्ठर]], [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]] और [[सहदेव]] थे।</ref> की [[शंख]] ध्वनि से [[कौरव]]<ref>[[गान्धारी]] और [[धृतराष्ट्र]] के सौ पुत्र कौरव कहलाते हैं। [[दुर्योधन]] इनमें सबसे बड़ा था।</ref> वीरों के व्यथित होने का वर्णन करके, अब चार श्लोकों में भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> के प्रति कहे हुए [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वह [[द्रोणाचार्य]] का सबसे प्रिय शिष्य था। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में जीतने वाला भी वही था।</ref> के उत्साहपूर्ण वचनों का वर्णन किया जाता है- |
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− | और उस भयानक शब्द ने आकाश और [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] को भी गुँजाते हुए < | + | और उस भयानक शब्द ने आकाश और [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] को भी गुँजाते हुए [[धृतराष्ट्र]]<ref>धृतराष्ट्र [[पाण्डु]] के बड़े भाई थे। [[गाँधारी]] इनकी पत्नी थी और [[कौरव]] इनके पुत्र। वे पाण्डु के बाद [[हस्तिनापुर]] के राजा बने थे।</ref> के यानी आपके पक्ष वालों के हृदय विदीर्ण कर दिये ।।19।। |
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+ | ==संबंधित लेख== | ||
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12:29, 3 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-19 / Gita Chapter-1 Verse-19
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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