विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है। ऐसे संशयमुक्त मनुष्य के लिये न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है ।।40।।
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He who lacks discrimination, is devoid of faith, and is at the same time possessed by doubt is lost to the spiritual path. For the doubting soul there is neither this world nor the world beyond, nor even happiness.(40)
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