वेद[1] के जानने वाले विद्वान् जिस सच्चिदानन्दघन रूप परमपद को अविनाशी कहते हैं, आसक्ति रहित यत्नशील संन्यासी महात्माजन जिसमें प्रवेश करते हैं, और जिस परमपद को चाहने वाले ब्रह्मचारी लोग ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं, उस परम पद को मैं तेरे लिये संक्षेप से कहूँगा ।।11।।
|
I shall tell you briefly about that supreme goal (viz., god who is an embodiment of truth, knowledge and bliss), which the knowers of the veda term as the indestructible; which striving recluses free from passion enter, and desiring which the celibates practice Brahmacarya. (11)
|