हे अर्जुन[1] ! जो पुरुष मुझ में अनन्यचित्त होकर सदा ही निरन्तर मुझ पुरुषोत्तम को स्मरण करता है, उस नित्य निरन्तर मुझमें युक्त हुए योगी के लिये मैं सुलभ हूँ, अर्थात् उसे सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ ।।14।।
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Arjuna, whosoever always and constantly thinks of me with undivided mind, to that yogi ever absorbed in me I am easily attainable . (14)
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