गीता 8:28

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गीता अध्याय-8 श्लोक-28 / Gita Chapter-8 Verse-28

प्रसंग-


भगवान् ने अर्जुन[1] को योग युक्त होने के लिये कहा। अब योग युक्त पुरुष की महिमा और इस अध्याय में वर्णित रहस्य को समझकर उसके अनुसार साधना करने का फल बतलाते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं-


वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव
दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् ।
अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा
योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ।।28।।



योगी पुरुष इस रहस्य को तत्त्व से जानकर वेदों के पढ़ने में तथा यज्ञ, तप और दानादि के करने में जो पुण्यफल कहा है, उस सबको नि:सन्देह उल्लंघन कर जाता है और सनातन परमपद को प्राप्त होता है ।।28।।

The yogi, realizing this profound truth, doubtless transcends all the rewards, ascribed in the scriptures to the study of the Vedas, as well as to the performance of sacrifices, austerities and charities, and attains the beginningless supreme state. (28)


योगी = योगी पुरुष ; इदम् = इस रहस्य को ; विदित्वा = तत्त्व से जानकर ; वेदेषु = वेदों के पढ़ने में ; च = तथा ; यज्ञेषु = यज्ञ ; तप:सु = तप (और) ; दानेषु = दानादिकों के करने में ; यत् = जो ; पुण्यफलम् = पुण्यफल ; प्रदिष्टम् = कहा है ; तत् = उस ; सर्वम् = सबको ; एव = नि: सन्देह ; अत्येति = उल्लंघन कर जाता है ; च = और ; आद्यम् = सनातन ; परम् = परम ; स्थानम् = पदको ; उपैति = प्राप्त होता है



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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