उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन[1] ! इस शरीर में मैं वासुदेव[2] ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ ।।4।।
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All perishable objects are Adhibhuta; the shining purusa (Brahma) is Adhidaiva; and in this body I myself, dwellings as the inner witness, am adhiyajna, O Arjuna! (4)
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