"गीता 8:11": अवतरणों में अंतर
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[[वेद]]<ref>वेद [[हिन्दू धर्म]] के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।</ref> के जानने वाले विद्वान् जिस सच्चिदानन्दघन रूप परमपद को अविनाशी कहते हैं, आसक्ति रहित यत्नशील | [[वेद]]<ref>वेद [[हिन्दू धर्म]] के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।</ref> के जानने वाले विद्वान् जिस सच्चिदानन्दघन रूप परमपद को अविनाशी कहते हैं, आसक्ति रहित यत्नशील संन्यासी महात्माजन जिसमें प्रवेश करते हैं, और जिस परमपद को चाहने वाले ब्रह्मचारी लोग [[ब्रह्मचर्य]] का आचरण करते हैं, उस परम पद को मैं तेरे लिये संक्षेप से कहूँगा ।।11।। | ||
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11:44, 3 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-8 श्लोक-11 / Gita Chapter-8 Verse-11
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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