"गीता 12:7": अवतरणों में अंतर
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हे < | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! उन मुझ में चित्त लगाने वाले प्रेमी भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार-समुद्र से उद्धार करने वाला होता हूँ ।।7।। | ||
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पार्थ = हे अर्जुन; तेषाम् = उन; मयि = मेरेमें; आवेशितचेतसाम् = चित्त को लगानेवाले प्रेमीभक्तों का; अहम् = मैं; नचिरात् = शीघ्र ही; मृत्युसंसारसागरात् = मृत्युरूप संसारसमुद्रसे; समुद्धर्ता = उद्धार | पार्थ = हे अर्जुन; तेषाम् = उन; मयि = मेरेमें; आवेशितचेतसाम् = चित्त को लगानेवाले प्रेमीभक्तों का; अहम् = मैं; नचिरात् = शीघ्र ही; मृत्युसंसारसागरात् = मृत्युरूप संसारसमुद्रसे; समुद्धर्ता = उद्धार करने वाला; भवामि = होता हूं | ||
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14:12, 17 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-12 श्लोक-7 / Gita Chapter-12 Verse-7
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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