"गीता 17:15": अवतरणों में अंतर
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जो उद्वेग न करने वाला, प्रिय और हितकारक एवं यथार्थ भाषण है तथा जो < | जो उद्वेग न करने वाला, प्रिय और हितकारक एवं यथार्थ भाषण है तथा जो [[वेद]]<ref>वेद [[हिन्दू धर्म]] के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।</ref>-शास्त्रों के पठन का एवं परमेश्वर के नाम जपने का अभ्यास है- वही वाणी संबंधी तप कहा जाता है ।।15।। | ||
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Words which cause no annoyance to others and are truthful, agreeable and wholesome, as well as the study of the Vedas and other Sastras and the practice of repetition of the Divine Name—this is known as the austerity of speech.(15) | Words which cause no annoyance to others and are truthful, agreeable and wholesome, as well as the study of the Vedas and other Sastras and the practice of repetition of the Divine Name—this is known as the austerity of speech.(15) | ||
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च = तथा ; यत् = जो ; अनुद्वेगकरम् = उद्वेग को न करने वाला ; वाक्यम् = भाषण है ; च = और (जो) ; स्वाध्यायाभ्यसनम = वेद शास्त्रों के | च = तथा ; यत् = जो ; अनुद्वेगकरम् = उद्वेग को न करने वाला ; वाक्यम् = भाषण है ; च = और (जो) ; स्वाध्यायाभ्यसनम = वेद शास्त्रों के पढ़ने का एवं परमेश्र्वर के नाम जपने का अभ्यास है ; प्रियहितम् = प्रिय और हितकारक (एवं) ; सत्यम् = यथार्थ ; तत् = वह ; एव = नि:सन्देह ; वाड्भयम् = वाणीसम्बन्धी ; तप: = तप ; उच्यते = कहा जाता है | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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07:36, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-15 / Gita Chapter-17 Verse-15
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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