"गीता 17:5": अवतरणों में अंतर
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न जानने के कारण शास्त्रविधि का त्याग करके त्रिविध स्वाभाविक श्रद्धा के साथ यजन करने वालों का वर्णन किया गया, परंतु शास्त्रविधि का त्याग करने वाले अश्रद्धालु मनुष्यों के विषय में कुछ नहीं कहा गया, अत: यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि जिनमें श्रद्धा भी नहीं है और जो शास्त्रविधि को भी नहीं मानते और घोर तप आदि कर्म करते हैं, वे किस श्रेणी में हैं ? इस पर अगले दो श्लोकों में भगवान् कहते हैं- | न जानने के कारण शास्त्रविधि का त्याग करके त्रिविध स्वाभाविक श्रद्धा के साथ यजन करने वालों का वर्णन किया गया, परंतु शास्त्रविधि का त्याग करने वाले अश्रद्धालु मनुष्यों के विषय में कुछ नहीं कहा गया, अत: यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि जिनमें श्रद्धा भी नहीं है और जो शास्त्रविधि को भी नहीं मानते और घोर तप आदि कर्म करते हैं, वे किस श्रेणी में हैं ? इस पर अगले दो [[श्लोक|श्लोकों]] में भगवान् कहते हैं- | ||
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12:47, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-5 / Gita Chapter-17 Verse-5
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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