"गीता 17:1": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " मे " to " में ") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "कौनसी" to "कौन-सी") |
||
पंक्ति 45: | पंक्ति 45: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
कृष्ण = हे कृष्ण ; ये = जो मनुष्य ; शास्त्रविधिम् = शास्त्रविधि को ; उत्सृज्य = त्याग कर (केवल) ; श्रद्धया = श्रद्धा से ; अन्विता: = युक्त हुए ; यजन्ते = देवादिकों का पूजन करते हैं ; तेषाम् = उनकी ; निष्ठा = स्थिति ; तु = फिर ; का = | कृष्ण = हे कृष्ण ; ये = जो मनुष्य ; शास्त्रविधिम् = शास्त्रविधि को ; उत्सृज्य = त्याग कर (केवल) ; श्रद्धया = श्रद्धा से ; अन्विता: = युक्त हुए ; यजन्ते = देवादिकों का पूजन करते हैं ; तेषाम् = उनकी ; निष्ठा = स्थिति ; तु = फिर ; का = कौन-सी है (क्या) ; सत्त्वम् = सात्त्वि की है ; आहो = अथवा ; रज: = राजसी (किंवा) ; तम: = तामसी है; | ||
|- | |- | ||
|} | |} |
13:06, 18 मार्च 2011 का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-1 / Gita Chapter-17 Verse-1
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||