"गीता 4:40": अवतरणों में अंतर
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अज्ञ: = भगवत विषय को न जानने वाला; अश्रदृघान: = श्रद्वारहित; संशयात्मा = संशययुक्त पुरुष; विनश्यति = परमार्थ से भ्रष्ट हो जाता है; (उनमें भी); संशयात्मन: संशययुक्त पुरुष के लिये तो; पर; परलोक; अस्ति = है अर्थात् यह लोक और परलोक दोनों ही उसके लिये भ्रष्ट हो जाते | अज्ञ: = भगवत विषय को न जानने वाला; अश्रदृघान: = श्रद्वारहित; संशयात्मा = संशययुक्त पुरुष; विनश्यति = परमार्थ से भ्रष्ट हो जाता है; (उनमें भी); संशयात्मन: संशययुक्त पुरुष के लिये तो; पर; परलोक; अस्ति = है अर्थात् यह लोक और परलोक दोनों ही उसके लिये भ्रष्ट हो जाते हैं। | ||
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08:16, 20 फ़रवरी 2011 का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-40 / Gita Chapter-4 Verse-40
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