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13:17, 21 मार्च 2010 का अवतरण

गीता अध्याय-15 श्लोक-5 / Gita Chapter-15 Verse-5

प्रसंग-


अब उपर्युक्त प्रकार से आदि पुरुष परम पद स्वरूप परमेश्वर की शरण होकर उसको प्राप्त हो जाने वाले पुरुषों के लक्षण बतलाये गये हैं-


निर्मानमोहा जितसग्ङदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामा: ।
द्वन्द्वैर्विमुक्ता: सुखदु:खसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढा: पदमव्ययं तत् ।।5।।



जिनका मान और मोह नष्ट हो गया है, जिन्होंने आसक्ति रूप दोष को जीत लिया है, जिनकी परमात्मा के स्वरूप में नित्य स्थिति है और जिनकी कामनाएँ पूर्ण रूप से नष्ट हो गयी हैं- वे सुख-दु:ख नामक द्वन्द्वों से विमुक्त ज्ञानीजन उस अविनाशी परमपद को प्राप्त होते हैं ।।5।।

Those wise men who are free from pride and delusion, who have conquered the evil of attachment, who are in eternal union with God, whose cravings have altogether ceased and who are completely immune from all pairs of oposites going by the names of pleasure and pain, reach that supreme immortal state. (5)


निर्मानमोहा: = नष्ट हो गया है मान और मोह जिनका (तथा) ; जितसग्डदोषा: = जीत लिया है आसक्तिरूप दोष जिनने (और) ; अध्यात्मनित्या: = परमात्मा के स्वरूप में है निरन्तर स्थिति जिनकी (तथा) ; विनिवृत्तकामा: = अच्छी प्रकार से नष्ट हो गई है कामना जिनकी (ऐसे वे) ; सुखदु:खसंज्ञै: = सुखदु:ख नामक ; द्वन्द्वै: = द्वन्द्वों से ; विमुक्ता: = विमुक्त हुए ; अमूढा: = ज्ञानीजन ; तत् = उस ; अव्ययम् = अविनाशी ; पदम् = परमपद को ; गच्छन्ति = प्राप्त होते हैं ;



अध्याय पन्द्रह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-15

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)