हे भारत[1] ! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्त:करण के अनुरूप होती है। यह पुरुष श्रद्धामय है, इसलिये जो पुरुष जैसी श्रद्धा वाला है वह स्वयं भी वही है ।।3।।
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The faith of all men conforms to their mental constitution, Arjuna. This man consists of faith; whatever the nature of his faith, he is verily that.(3)
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