गीता 8:14

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गीता अध्याय-8 श्लोक-14 / Gita Chapter-8 Verse-14

प्रसंग-


इस प्रकार निराकार-सगुण परमेश्वर के और निगुर्ण निराकार ब्रह्म के उपासक योगियों की अन्तकालीन गति का प्रकार और फल बतलाया गया; किंतु अन्तकाल में इस प्रकार का साधन वे ही पुरुष कर सकते हैं, जिन्होंने पहले से योग का अभ्यास करके मन को अपने अधीन कर लिया है। साधारण मनुष्य के द्वारा अन्तकाल में इस प्रकार सगुण निराकार का और निर्गुण निराकार का साधन किया जाना बहुत ही कठिन है, अतएवं सुगमता से परमेश्वर की प्राप्ति का उपाय जानने की इच्छा होने पर अब भगवान् अपने नित्य निरन्तर स्मरण को अपनी प्राप्ति का सुगम उपाय बतलाते हैं-


अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: ।
तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ।।14।।



हे अर्जुन[1] ! जो पुरुष मुझ में अनन्यचित्त होकर सदा ही निरन्तर मुझ पुरुषोत्तम को स्मरण करता है, उस नित्य निरन्तर मुझमें युक्त हुए योगी के लिये मैं सुलभ हूँ, अर्थात् उसे सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ ।।14।।

Arjuna, whosoever always and constantly thinks of me with undivided mind, to that yogi ever absorbed in me I am easily attainable . (14)


पार्थ = हे अर्जुन ; य: = जो पुरुष ; अनन्यचेता: = मेरे में अनन्य चित्त से स्थित हुआ ; नित्यश: = सदा ही ; सततम् = निरन्तर ; अहम् = मैं ; माम् = मेरे को ; स्मरति = स्मरण करता है ; तस्य = उस ; नित्ययुक्तस्य = निरन्तर मेरे में युक्त हुए ; योगिन: = योगी के (लिये) ; सुलभ: =सुलभ हूं



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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