जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित केवल मन: कल्पित घोर तप को तपते हैं तथा दम्भ और अहंकार से युक्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त है; ।।5।।
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Men who practise dire penance of an arbitrary type not sanctioned by the scriptures, and who are full of hypocrisy and egotism and are obseseed with desire, attachment and pride of power;(5)
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